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- Yadav, Jews And Political Stories Of Uttar Pradesh, Read The Hindu Editorial Of 14 November
4 घंटे पहले
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22 अक्टूबर, को इजराइल और हमास के बीच चल रहे युद्ध की गूंज उत्तर प्रदेश में सुनाई दी, जब सुदर्शन न्यूज़ पर दो कार्यक्रम किये गए, जिसमें यादव और यहूदी को एक जैसा बताया गया, तथा मोसेस और भगवान कृष्ण के जीवन में समानताएं बताई गईं।
सुदर्शन न्यूज एक हिंदुत्वादी चैनल है, जो अपने तीखे और उकसाने वाले कार्यक्रम के कारण दो बार न्यायिक जांच के दायरे में आ चुका है।
कुछ दिन बाद, तिजारा विधान सभा क्षेत्र में एक चुनावी रैली का संबोधन करते हुए, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इजराइल और हमास की लड़ाई को भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस की लड़ाई के समान बता दिया। इस सीट पर कांग्रेस ने एक मुस्लिम उम्मीदवार को अपना प्रतिनिधि बनाया है।
’क्या यादव ही यहूदी हैं’’ नाम के एक कार्यक्रम में सुदर्शन न्यूज में प्राइम टाइम की आवाज सुरेश चौहांके ने कहा कि उनके चैनल के “शोध” के बाद अधिकांश यादवों ने इस बात को सच माना है सिवाय कुछ के, जो कि राजनीतिक हैं, और उन्हें मुसलमान वोट चाहिए हैं।
यह बात साफ है कि उनका इशारा समाजवादी पार्टी के नेतृत्व की तरफ था। समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी है, जिसमें यादव और मुसलमान वोटरों को मंडल युग के बाद एक साथ लाया, और उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बड़े खिलाड़ी के रूप में उभरे। ऐसा राम जन्मभूमि आंदोलन की हिंदुत्व लहर के बावजूद भी हुआ।
चैनल का हैशटैग ’यहूदी यादव हैं‘ भ्रामक लेकिन आकर्षक है। कार्यक्रम विशेष रूप से यादव समुदाय पर केंद्रित था, एक पिछड़े खेती-बाड़ी से जुड़ी जाति, जिसका प्रतिनिधित्व 1990 में अदर बैकवर्ड कास्ट ( OBC) के आरक्षण लागू होने के बाद का पुलिस और अन्य सशस्त्र बलों में सबसे बड़ा दल था।
इसके पीछे का लक्ष्य झूठे तर्क देकर इस समुदाय की सामाजिक हैसियत को बढ़ाना, और उन्हें हिंदुत्व की छतरी के नीचे लाना है।
यह ध्यान देना दिलचस्प है कि यादव समुदाय जो की खेती से जुड़ी जातियों में से एक है, खुद को यदुवंश के वंशज मानते हैं। भगवान कृष्ण को भी इसी वंश का माना जाता है, लेकिन इस समुदाय ने कृष्ण जन्मभूमि आंदोलन में बहुत दिलचस्पी नहीं दिखाई।
सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज के एक शोध में दिखाया गया है कि 83% यादव समाज के लोगों ने समाजवादी पार्टी को वोट दिया।
आदित्यनाथ, जिन्होंने अधिकारियों को इजराइल फिलिस्तीन युद्ध की आड़ लेकर नफरत फैलाने वालों पर सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए थे, वे राजस्थान की चुनावी सभा में खुद पर संयम नहीं रख पाए।
कुछ हल्के उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि तालिबानी सोच रखने वालों का इलाज बजरंगबली ( भगवान हनुमान) की गदा से ही संभव है।
इजराइल की तारीफ करते और कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा, ” हम देख सकते हैं, कैसे इजरायल गाजा में तालिबानी सोच को रौंद रहा है।”
एक ऐसे समय जब समाजवादी पार्टी और कांग्रेस जाति जनगणना को लेकर शोर मचा रही है, वैसे में बीजेपी, इजराइल – हमास युद्ध का उपयोग विपक्ष के सामाजिक न्याय की मांग को कमजोर करने के लिए कर रही है। सामाजिक समरसता के अपने परिभाषा में तर्क और विवेक को भावनाओं के नीचे दबा दिया जाता है।
पिछले महीने, विधान सभा क्षेत्र, जहां दलितों की आबादी अधिक है, आदित्यनाथ ने दलित समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि कवि वाल्मीकि जिन्होंने संस्कृत में रामायण और ऋषि वेद व्यास, जिन्होंने महाभारत लिखी, वे भी दलित थे।
उन्होंने हिंदू समाज में समरसता की भी बात की। ऐसा तब हुआ जब स्वामी प्रसाद मौर्य, समाजवादी पार्टी के गैर यादव चेहरे ने बार-बार सनातन धर्म और रामचरितमानस में लिखी बातों को ’दलित विरोधी’ और ’महिला विरोधी ’ बताया।
इसके अलावा निषाद पार्टी जो कि बीजेपी की एक सहयोगी है, और नाव चलाने वाले समुदाय का प्रतिनिधित्व करती है, वह वेद व्यास को अपना पूर्वज मानती है और रामायण और महाभारत में अपने समुदाय के भूमिका को लेकर गर्व महसूस करती है। हालांकि इन सब के बाद वह अपनी जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करना चाहते हैं।
यह शासन कर रही पार्टी के लिए परीक्षा है कि वह कैसे विवाद पैदा करने वाले मुद्दों को सुलझा कर, सबको हिंदुत्व के दायरे में लाती है, जबकि जातिगत पहचान दोबारा शक्तिशाली हो रही है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रयागराज के पास निषादराज ( नदी से जुड़े रोजगार करने वालों के पूर्वज जिन्होंने भगवान राम को वनवास के दौरान नाव में नदी पार कराई थी ) को गले लगाते भगवान राम की एक बड़ी मूर्ति की मंजूरी दी है।
निषाद समाज जहां इस बात से खुश है, वहीं वो अनुसूचित जाति के दर्जा पाने की मांग भी कर रहा है। हालांकि बीजेपी दलित वोट अपनी तरफ आकर्षित करना चाहती है, लेकिन इसी साल मार्च में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के डेटा के अनुसार केंद्र ने संसद में बताया कि 2018 से 2021 तक दलितों के खिलाफ दर्ज 1,89,945 अपराधिक मामलों में सबसे अधिक 49,613 अकेले उत्तर प्रदेश में दर्ज हुए।
Source: The Hindu
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