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- Why Are The Conditions Worsening In The Red Sea And How Can They Be Improved, Read 18 January The Hindu Editorial
37 मिनट पहले
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हाल के दिनों में लाल सागर मार्ग व्यापार और सफलता की दृष्टि से सुरक्षित नहीं रह गया है। इजराइली हमलों और गाजा पर बमबारी का बदला लेने के लिए यमन में स्थित हूती विद्रोहियों ने लाल सागर मार्ग से गुजरने वाले व्यापारिक जहाजों पर हमला शुरू कर दिया है।
ये हमले नवंबर के मध्य में शुरू हुए थे। ड्रोन और एंटी–शिप बैलिस्टिक मिसाइल (ASBMS) का उपयोग करके हूतीयों ने जहाजों पर सवार होने की कोशिश की। यहां तक कि उन्होंने हेलीकॉप्टर की मदद से ’गैलेक्सी लीडर’ जहाज का अपहरण किया।
हूतीयों द्वारा इस्तेमाल किए विभिन्न तरीकों और हथियारों से पता चलता है कि उनके पास किस तरह के संसाधन मौजूद हैं और उन्हें किस तरह की ट्रेनिंग दी जा रही है। सऊदी अरब द्वारा हूती हमलों की चेतावनी के बावजूद यूनाइटेड स्टेट्स ने हूती विद्रोहियों को आतंकवाद की सूची से हटा दिया था।
लेकिन एक नए घटनाक्रम में, यूनाइटेड स्टेट्स मध्य फरवरी से इस संगठन को दुनिया की आर्थिक व्यवस्था से अलग करने पर विचार कर रहा है। साथ ही, हूती विद्रोहियों को आतंकी संगठन के रूप में मान्यता देने पर भी विचार हो रहा है।
व्यापार में बाधा चिंता का विषय है

इन बातों से कई सालों से चल रहे संयुक्त युद्ध अभ्यास के दावे पर भी सवाल उठते हैं। यह भी याद रखना चाहिए कि कुछ संगठित समुद्री लुटेरों के समूह से निपटने में इन देशों को कई साल का समय लग गया था, जबकि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि इन समूहों को कोई सरकारी मदद मिल रही थी।
इसी के चलते, देर से मिली अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया के कारण समुद्री लुटेरों को आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल सीखने का पर्याप्त समय मिल गया। साथ ही, ये लुटेरे लूटी हुई जहाज का इस्तेमाल मदर शिप के रूप में करने लगे हैं।
इससे खुले समुद्र में उनके हमले ज्यादा आसान हो गए हैं और ज्यादा खतरे वाले क्षेत्र बढ़ गए हैं। इसका समुद्री व्यापार और मार्ग परिवर्तन पर बुरा असर पड़ रहा है। साथ ही, बीमा का खर्च भी बढ़ गया है।
ऐसी ही मुश्किलें संचालन में भी दिखाई दे रही हैं। हूतीयों द्वारा अपहरण किये जहाजों का इस्तेमाल यदि हमले के लिए किया जाता है तो उसपर जवाबी हमला करने से बंधकों का जीवन खतरे में पड़ जायेगा।

सहयोगियों की तरफ से फीकी प्रतिक्रिया
यूनाइटेड स्टेट्स द्वारा जारी किये ऑपरेशन प्रॉस्पेरिटी गार्जियन, जिसे कंबाइंड मेरीटाइम फोर्सेज (CMF) 153 के तहत संचालित होना था, सहयोगियों और रणनीतिक साझेदारों की फीकी प्रतिक्रिया झेल रहा है। ऐसी स्थिति में जहां यूनाइटेड स्टेट्स को अंतरराष्ट्रीय सहयोग से सैन्य हमले करने होंगे, जिसमें सफलता मिलने की सम्भावना कम ही है।
शायद सऊदी के नेतृत्व में यमन में चल रहे युद्ध को खत्म करने के लिए हो रही बातचीत पर बुरे असर के डर से सऊदी अरब इस अभ्यास का हिस्सा नहीं बना।
पिछले कुछ समय में ईरान के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिशों पर इसका बुरा असर पड़ सकता है। एक अन्य महत्वपूर्ण कारण यह भी हो सकता है कि अभ्यास में शामिल होने से वह इजराइल का समर्थक दिख सकता है। ऐसा भी हो सकता है कि संयुक्त अरब अमीरात भी इन्हीं कारणों से अभ्यास से दूरी बनाए हुए है।
भारत, जो 2022 में CMF के सहयोगी साझेदार के रूप में जुड़ा था, नवंबर 2023 तक पूर्ण सदस्य बन गया था। भारत भी स्वतंत्र रूप से काम कर रहा है। यूनाइटेड स्टेट्स के दबाव में ईरान के कच्चे तेल की खरीद रुकने के बाद भी ईरान के साथ भारत के सम्बन्ध बने हुए हैं। यूनाइटेड स्टेट्स के सहयोगियों जापान और ऑस्ट्रेलिया ने भी इस अभ्यास में हिस्सा नहीं लिया है।
ऑपरेशन प्रॉस्पेरिटी गार्जियन के तहत मिल कर काम करने में स्पष्ट विफलता, समान विचारधारा वाले देशों के बीच विभाजन दिख रहा है। गहरे समुद्र में नेविगेशन की स्वतंत्रता के अधिकार और समुद्री सुरक्षा इन देशों को एक मंच पर लाने का काम कर सकती हैं।
नाप तोल पर कार्यवाही करने की जरूरत
हूती विद्रोही साफ तौर पर इस विभाजन का फायदा ले रहे हैं और यूनाइटेड स्टेट्स की दबंग राष्ट्र की छवि पर सवाल खड़े कर रहे हैं। समुद्री लूट का समाधान/हल समुद्र नहीं जमीन पर है और यूनाइटेड स्टेट्स और यूनाइटेड किंगडम द्वारा किए गए हमले इसी सोच का सबूत हैं।
इसलिए, जबकि सैन्य रणनीतियां और रणनीतिक (tactical) विचार हथियार उठाने की सलाह देते हैं, सैन्य हथियारों को उपलब्ध कराने से रोकने की जरूरत है। हालांकि, यमन और लीबिया में फर्क है और दुनिया का बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है।
इन सब गतिविधियों के चलते, स्थिति पर किसी का नियंत्रण नहीं दिख रहा है और इसमें अभी और गिरावट आ सकती है। इसमें एक ऐसे समाधान को खोजने की जरूरत है जिसमें सभी की सहमति शामिल हो।
किसी की भी कार्यवाही से पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि देशों के बीच टकराव की स्थिति न बने और हूती को एक सरकारी तंत्र का दर्जा न मिले। सबसे अधिक जरूरी यह है कि यमन को लेबनान की तरह युद्ध के मैदान में न बदला जाए।
शुरुआत में, इस ऑपरेशन का हिस्सा बताए जा रहे नौ देशों, जिनमें नार्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (NATO) के तीन देश फ्रांस, इटली और स्पेन ने अभ्यास का हिस्सा बनने से इंकार कर दिया है और वे स्वतंत्र रूप से काम कर रहे हैं।
पश्चिमी एशिया का अकेला देश बहरीन, जहां यूनाइटेड स्टेट्स की फिफ्थ फ्लीट के मुख्यालय स्थित हैं, ने इस अभ्यास में हिस्सा लिया है।
लेखक: सरबजीत सिंह परमार, रिटायर्ड कैप्टन हैं। सेंटर फॉर मिलिट्री हिस्ट्री एंड कॉन्फ्लिक्ट स्टडीज, यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया (USI), और काउंसिल फॉर स्ट्रैटेजिक एंड डिफेंस रिसर्च के प्रतिष्ठित फेलो हैं।
Source: The Hindu
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