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What reforms are needed in India’s examination systems, read the hindu editorial of 6 January | The Hindu हिंदी में: भारत की परीक्षा व्यवस्थाओं में किन सुधारों की जरूरत है, पढ़िए 6 जनवरी का एडिटोरियल

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3 घंटे पहले

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हर साल परीक्षाओं के दौर शुरू होने के साथ ही मीडिया में कुछ यूनिवर्सिटी और स्कूल बोर्ड से जुड़े घोटालों की खबरें आने लगती हैं।

परीक्षा प्रणाली की साख परीक्षा, स्कूल बोर्ड द्वारा जारी किए गए सर्टिफिकेट के स्तर से जुड़ी होती है।

परीक्षा प्रणाली पर भरोसे में कमी का असर शिक्षा संस्थानों में शिक्षा के स्तर को बुरी तरह प्रभावित करता है।

पढ़ाना और पढ़ना इस प्रकार से होना चाहिए कि किसी भी छात्र को किसी भी प्रकार की परीक्षा के लिए तैयार किया जा सके।

इसके उलट, यदि परीक्षा का पैटर्न पहले से पता हो, जिनमें याद रखने की क्षमता पर विशेष जोर हो, तो छात्रों को केवल रटने के लिए तैयार किया जाता है। फिलहाल, यही सामान्य पैटर्न है।

इसके अलावा, ज्यादा अंक और अच्छे से पास होने के प्रतिशत को हासिल करना शिक्षा प्रशासन का मुख्य लक्ष्य होता है।

इसका नतीजा यह होता है कि, नौकरी देने वालों को अच्छे उम्मीदवार खोने के लिए अधिक खर्च करना पड़ता है।

शिक्षा के स्तर को सुधारने में एक भरोसेमंद परीक्षा प्रणाली का प्रमुख योगदान होता है।

बंटी हुई व्यवस्था

इस वजह से भारत में उच्च शिक्षा व्यवस्था में कई प्रकार की परीक्षा प्रक्रिया और मूल्यांकन विधियां हैं।

इसके अलावा सेकेंडरी और हायर सेकेंडरी के लिए 60 स्कूल बोर्ड हैं, जिनसे हर साल 1 करोड़ 50 लाख छात्रों के प्रमाण पात्र जारी किए जाते हैं।

गोपनीयता और समान मानक किसी भी अच्छे परीक्षा की पहचान माने जाते हैं।

लेकिन बिना उचित सावधानी बरते, गोपनीयता घोटालों को जन्म देती है।

परीक्षाओं में एक मानक लागू करके समानता लाने की कोशिश में मूल्यांकन और पाठ्यक्रम में नए प्रयोग करने की संभावना खत्म हो जाती है।

शिक्षा संस्थानों में, कोर्स के खत्म होने के बाद परीक्षा लेकर छात्र को प्रमाण पत्र जारी किया जाता है।

गुजरते समय के साथ इसकी वैधता और अन्य संस्थानों के साथ तुलना का कोई अर्थ नहीं निकलता है। यह असमानता चिंता का विषय है।

परीक्षा के जरिए समझ की क्षमताओं की जांच होनी चाहिए। इनमें याद रखने की क्षमता से लेकर ज्ञान को बढ़ाने और आलोचना युक्त विचार करने की क्षमता शामिल हैं।

अक्सर यह आरोप लगाए जाते हैं कि परीक्षा बोर्ड केवल रटने की क्षमता को महत्व देते हैं।

इसलिए शिक्षक भी छात्रों की बेहतर सोच विकसित करने की जगह प्रश्नों के उत्तर याद करने और अच्छे अंक लाने के लिए तैयार करते हैं।

ऐसे कई मौके आए हैं जब हम प्रश्न पत्रों में भाषा और समझ से जुड़ी गंभीर गलतियां, विषय से अलग प्रश्न और ऐसे प्रश्न देते हैं जो उच्च शिक्षा का परीक्षण नहीं करते हैं।

उत्तर पुस्तिकाओं की जांच लापरवाही से होती है और छात्रों को मिलने वाले ग्रेड उनके वास्तविक शिक्षा के स्तर को नहीं दिखाते हैं।

किसी भी ग्रेजुएट छात्र की नौकरी पाने की क्षमता उसके उच्च शिक्षा को सीखने की क्षमता पर निर्भर करती है।

लेकिन परीक्षा बोर्ड इन योग्यताओं के आधार पर प्रमाण पत्र नहीं बांटते हैं यानी हमारी संस्थागत परीक्षाएं इस मामले में विफल हैं।

नौकरी देने वाली कंपनियां संस्थाओं द्वारा बांटे गए प्रमाण पत्रों पर विशेष ध्यान नहीं देती और उम्मीदवारों की जांच के लिए कठोर मूल्यांकन प्रक्रिया का सहारा लेती हैं।

इस वजह से कोचिंग संस्थाओं और हुनर का एक नया बाजार उभर कर सामने आया है।

मूल्यांकन गुणवत्ता की परख

कोर्स के शिक्षा से जुड़े पक्ष को एक अच्छे मूल्यांकन व्यवस्था की नींव रखनी चाहिए।

भारत में मानक तय करने वाले सभी संस्थान परिणाम आधारित सीखने पर जोर देते हैं।

सही रेगुलेटरी बोर्ड पाठ्यक्रम के डिजाइन, शिक्षा शास्त्र और परीक्षा व्यवस्था पर विस्तार के साथ सलाह देते हैं।

नियमित और असरदार निगरानी न हो पाने के कारण इन सलाहों का शिक्षण संस्थान पालन नहीं करते हैं।

हर ग्रेजुएट और डिप्लोमा कार्यक्रम के पाठ्यक्रम, अपने अधिकतर लक्ष्य और अपेक्षित नतीजों पर खरे उतरते हैं।

साथ ही, इनमें कुशल विकास की भी सूची होती है जिसमें ध्यान देना चाहिए।

लेकिन सिलेबस की सावधानी से जांच करने पर असंगति और अन्य कमियां सामने आने लगती हैं।

असलियत में कक्षा में दी जाने वाली शिक्षा उच्च सोच और बेहतर कुशल प्रदान करने में असफल रहती हैं।

इसलिए, एक स्पष्ट निगरानी की प्रक्रिया तथा पाठ्यक्रम डिजाइन और शिक्षण में पेशेवर संस्थाओं की अधिक भागीदारी से एक उचित मूल्यांकन व्यवस्था बनाने में मदद मिलेगी।

हम परीक्षा में सुधार के लिए पाठ्यक्रम में बदलाव का इंतजार नहीं कर सकते हैं। बल्कि, दोनों प्रक्रियाएं साथ-साथ चलनी चाहिए।

मूल्यांकन से जुड़ी एक और महत्वपूर्ण समस्या है पूरी परीक्षा प्रक्रिया में शामिल गोपनीयता।

परीक्षा प्रक्रिया में प्रश्न पत्र तैयार करने से लेकर उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन और मार्कशीट तैयार करना शामिल है।

गोपनीयता की आड़ लेकर कुछ शिक्षक, घटिया स्तर का काम करते हैं। उन्हें गोपनीयता से घोटाले करने का भी मौका मिलता है।

एक बड़ी परीक्षा व्यवस्था को मूल्यांकन के एक समान मानक को बनाए रखने के लिए डिजाइन किया गया है।

लेकिन बड़ी व्यवस्था में गड़बड़ी और गलत व्यव्हार अपनाने की सम्भावना बनी रहती है। ये कमियां एकरूपता और गोपनीयता का मजाक उड़ाती हैं।

रेगुलेटरी संस्थाएं कॉलेजों को स्वायत्तता अपनाने और अपनी परीक्षाओं के आधार पर अपने छात्रों को प्रमाणित करने के लिए बढ़ावा देती हैं।

उनके द्वारा दी गई डिग्रियां/ डिप्लोमा अन्य सम्बद्ध यूनिवर्सिटी के बराबर महत्त्व रखती हैं।

स्वायत्तता नियम स्वायत्त कॉलेज परीक्षा पर संबद्ध यूनिवर्सिटी को निगरानी का कम ही मौका देते हैं।

उच्च शिक्षा को रेगुलेट करने वाले, बिना निगरानी के स्वायत्त संस्थानों के माध्यम से केन्द्रीकरण का विकल्प तैयार करते है। परीक्षाओं के लिए एक मानक तैयार करना एक नाटक है।

कौन से कदम उठाने चाहिए

यदि सीखने के परिणामों के लिए न्यूनतम मानक तय किए जाते हैं, तो उन्हें हासिल करने के कई तरीके हैं।

शिक्षा की हर शाखा से जुड़े लोग, पाठ्यक्रम के डिजाइन, शिक्षा शास्त्र और मूल्यांकन की प्रक्रिया पर लेख लिखते रहते हैं।

कोर्स के दौरान निरंतर मूल्यांकन पूरी मूल्यांकन प्रक्रिया को शिक्षक के भरोसे छोड़ देता है।

हालांकि, यह व्यवस्था अक्सर व्यक्ति के नजरिये से प्रभावित होती है, लेकिन उचित दस्तावेज तैयार करने और हर समय निगरानी करने के साथ, छात्रों द्वारा शिक्षकों के मूल्यांकन की प्रक्रिया इसे बेहतर बना सकती है।

कोर्स की समाप्ति के बाद परीक्षा और मूल्यांकन में भी सावधानी बरतने की जरूरत है।

मूल्यांकन में तकनीक का उपयोग इस प्रक्रिया पर भरोसा बढ़ाता है।

प्रश्न पत्रों को तैयार करने के लिए, शिक्षा सामग्री के मुद्दे पर मानक तय किए जा सकते हैं और मूल्यांकन में सावधानी के लिए नियम लाए जा सकते हैं।

मूल्यांकन से जुड़े हर पहलू के लिए विभिन्न प्रकार के सॉफ्टवेयर समाधान बाजार में उपलब्ध हैं, चाहे मूल्यांकन प्रक्रिया केंद्रित हो या बंटी हुई।

हर प्रकार की लापरवाही, धोखाधड़ी, शैक्षणिक कमियां और अन्य गुणवत्ता से जुड़ी समस्याओं के लिए कोड तैयार किया जाना चाहिए, और हर कोड के साथ सुधार के उपाय या दंड भी तय होने चाहिए।

मूल्यांकन प्रक्रिया तक छात्रों की पहुंच और उनकी शिकायतों को दूर करने की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।

साथ ही, मूल्यांकन प्रक्रिया तक पहुंचने में पारदर्शिता और उनकी शिकायतों को दूर करने के उपाय भी होने चाहिए।

यूनिवर्सिटी और स्कूल बोर्ड के मूल्यांकन प्रक्रियाओं का बाहरी ऑडिट जरूरी है।

ऐसी ऑडिट रिपोर्ट में शिक्षा से जुड़े विशेषज्ञों द्वारा तय सिद्धांतों और मानकों के आधार पर सभी प्रक्रियाओं को शामिल किया जाना चाहिए, ताकि परीक्षा व्यवस्था की विश्वसनीयता और निरंतरता सुनिश्चित की जा सके।

पारदर्शिता, विश्वसनीयता और निरंतरता के आधार पर परीक्षा बोर्ड का वर्ग तय करना, ऑडिट रिपोर्ट का एक हिस्सा होना चाहिए।

ऐसी सभी ऑडिट रिपोर्ट, हर बड़े परीक्षा के समाप्त होने के बाद सामने लाई जानी चाहिए, जैसा कि साल में दो बार अर्ध-वार्षिक रिपोर्ट लाना।

हम आशा करते हैं कि विश्वविद्यालय की डिग्रियां और स्कूल बोर्ड प्रमाणपत्र छात्रों के सीखने की उपलब्धियों को दिखाएंगे। परीक्षा बोर्ड को छात्रों का मूल्यांकन चुनौतीपूर्ण तरीके और व्यापक रूप से करना चाहिए।

छात्रों को उनकी शैक्षणिक उपलब्धियों के आधार पर ग्रेड मिलने चाहिए जो उन्हें अन्य छात्रों से अलग करता हो।

हालांकि, अच्छी परीक्षा व्यवस्था में गोपनीयता और समान मानकों के साथ ग्रेडिंग में निरंतरता का अपना महत्त्व है, लेकिन असली विशेषता प्रक्रिया में पारदर्शिता और न्यूनतम तय मानकों का पालन करके भरोसा बनाये रखना है।

लेखक: आर. श्रीनिवासन, तमिलनाडु सरकार की राज्य योजना आयोग के सदस्य हैं।

Source: The Hindu


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