[ad_1]
- Hindi News
- Career
- What Is India’s Stand In The Israel Hamas War? Read The Hindu Article Of 26 November
2 घंटे पहले
- कॉपी लिंक

पश्चिम और ग्लोबल साउथ के बीच भारत का झुकाव किस ओर दिखता है? क्या अब ये ग्लोबल साउथ की तुलना में पश्चिमी देशों के ज्यादा करीब है, और इसका भारत के पश्चिमी एशिया के देशों के साथ रिश्तों पर क्या असर होगा? इजराइल के मुख्य विरोधी, ईरान और भारत के रिश्तों का क्या होगा?
अब तक क्या हो चुका है
पिछले कुछ हफ्तों में भारत ने इजराइल–हमास युद्ध पर यूनाइटेड नेशंस में स्टेटमेंट, ज्वाइंट स्टेटमेंट और वोट के जरिए अपना विचार सामने रखा है। दोनों तरफ से कुछ बंधकों को छोड़ने के बाद, शुक्रवार से इस युद्ध में कुछ समय के लिए रोक लग गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो अलग वर्चुअल मीटिंग में हिस्सा ले चुके हैं, भारत के G–20 समिट का अंतिम सेशन और ’वाइस ऑफ ग्लोबल साउथ ’ का दूसरा एडिशन। इसमें उन्होंने विकास कर रहे देशों की चिंताओं पर ध्यान देने की जरूरत पर जोर दिया। एक्सटर्नल अफेयर्स मिनिस्टर एस. जयशंकर बातचीत के लिए यूनाइटेड किंगडम गए और साथ ही डिफेंस मिनिस्टर राजनाथ सिंह ने ‘2+2’ मीटिंग में यूनाइटेड स्टेट्स और ऑस्ट्रेलिया में अपने काउंटरपार्ट्स से बात की, जहां
ज्वाइंट स्टेटमेंट में पश्चिमी देशों का मत ज्यादा मजबूती से सामने आया।
भारत ने कौन सा मत स्पष्ट किया है?
इजराइल–गाजा सीमा पर हमास द्वारा 7 अक्टूबर के आतंकी हमले में 1,200 लोगों की जान गई। इसके बाद इजराइल की गाजा पर बमबारी में 13,000 लोगों की जान जा चुकी है। इस मामले में भारत की स्थिति की कई परतें हैं। जहां एक तरफ मोदी सरकार ने आतंक की कड़े शब्दों में निंदा की है और हमले में इजराइल का साथ दिया, वहीं अब तक इसने हमास को एक आतंकी संगठन नहीं बताया है। सरकार ने इजराइल को संयम दिखाने के साथ, बातचीत और कूटनीति का इस्तेमाल करने मांग की है, साथ ही सामान्य नागरिकों की मौत की आलोचना की है। इसके अलावा अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने बमबारी में इंसानियत के नाते कुछ कमी लाने की बात कही लेकिन अब तक युद्ध को पूरी तरह रोकने की बात नहीं कही है।
इसी समय में, भारत ने ‘टू स्टेट सोल्यूशन’ का समर्थन किया, जिसमें फिलिस्तीन को इजराइल के बगल में एक स्वतंत्र और शांतिपूर्ण देश का दर्जा देने की बात कही गई है। भारत ने फिलिस्तीनी लोगों के सामाजिक–आर्थिक सलामती का समर्थन करते हुए 70 टन इंसानी जरूरत की चीजें भेजी हैं, जिसमें 16.5 टन दवाइयां और अन्य जरूरी चीजें हैं। यह मदद पिछले महीने ईजिप्ट के रास्ते गाजा तक पहुंचाई गई है। इस बात की जानकारी जयशंकर ने साउथ अफ्रीका में हुई BRICS की मीटिंग में दी है।
हालांकि मोदी ने BRICS प्लस की मीटिंग में हिस्सा नहीं लिया जिसमें 11 अन्य देशों के लीडर मौजूद थे। उन्होंने साउथ अफ्रीका की उस मांग से अपनी असहमति दिखाई जिसमें इजराइल पर ‘वॉर क्राइम’ के लिए इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट द्वारा जांच कराने की मांग उठाई गई है। इसी बीच 26 अक्टूबर को यूनाइटेड नेशंस के UNGA में इजराइल के युद्ध खत्म करने की मांग पर हुए वोटिंग में भारत ने हिस्सा नहीं लिया था। लेकिन 9 नवंबर को UNGA की ‘फोर्थ कमिटी’ के अन्य ड्राफ्ट रिजॉल्यूशन में वेस्ट बैंक और सीरिया के गोलन में इजराइल की घुसपैठ की नीति के खिलाफ वोट किया था।
क्या भारत का विचार पश्चिम या ग्लोबल साउथ के ज्यादा करीब है?
पुराने समय से, जब भारत नॉन–अलाइनमेंट मूवमेंट का नेतृत्व कर रहा था, इजराइल–फिलिस्तीन मामले में भारत का झुकाव ग्लोबल साउथ की तरफ रहा है, जिसमें फिलिस्तीन के लक्ष्य को समर्थन दिया गया है। भारत ने बातचीत के जरिए विवाद को खत्म करने, साथ ही मजबूत रणनीतिक, सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी सहयोग और व्यापारिक रिश्तों को सुधारने की बात कही है। भारत ने 1992 से इजराइल के साथ कूटनीतिक संबंध बनाए हैं। कारगिल युद्ध के दौरान इजराइल द्वारा जरूरी और समय से हथियार और गोला बारूद उपलब्ध कराने के बाद, यूनाइटेड नेशंस में इजराइल के खिलाफ भारत की आवाज में नरमी आई है। इसमें गाजा पर इजराइल के हवाई हमले की निंदा में कमी भी शामिल है, जबकि भारत ने लगातार विकास कर रहे देशों के साथ हिंसा को रोकने के लिए वोट किया है। 26 अक्टूबर को भारत का वोट पिछली नीति से अलग था। उसने 45 अन्य देशों की तरह वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया, जिनमें अधिकतर यूरोपीय देश थे। वोटिंग में हिस्सा लेने वाले 120 देशों में अधिकतर ग्लोबल साउथ के देश थे जिनमें पश्चिमी एशिया, दक्षिणी एशिया, दक्षिण पूर्वी एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के लगभग सभी देश ने रेजोल्यूशन के लिए वोट किया। भारत ने अमेरिका के नेतृत्व में 7 अक्टूबर के आतंकी हमले की निंदा का समर्थन किया और इंसानियत के नाते युद्ध के बीच बमबारी रोकने की बात की, जिससे गाजा में खाना, ईंधन और पानी पहुंचाया जा सके। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ 2+2 मीटिंग में भी यही बात सामने निकल कर आई।
जहां पश्चिमी देशों जैसे अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, स्विट्जरलैंड और जर्मनी ने हमास को आतंकी संगठन माना है वहीं भारत ने ऐसा नहीं किया है। भारत को ऐसा करने पर मजबूर करने के लिए इजराइल ने 15 साल बाद, इस हफ्ते लश्कर–ए–तैयबा को आतंकी संगठन घोषित कर दिया है। इस समूह ने 26/11 को मुंबई पर आतंकी हमला किया था।
यह पश्चिमी देशों के साथ संबंध पर क्या असर डालेगा
हालांकि अधिकतर मामलों में इजरायल के साथ भारत के रिश्ते को भारत के फिलिस्तीन के रिश्ते से अलग करके देखा गया है, कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत के रुख में किसी तरह का बदलाव जो कि इजरायल के प्रति झुकाव को गल्फ और अरब देशों की तुलना में बढ़ा कर दिखाता है, उसे ध्यान से देखने की जरूरत है। हर देश का भारत के साथ संबंधों का बड़ा इतिहास रहा है। पिछले कई सालों में भारत ने यूनाइटेड अरब अमीरात और सऊदी अरब के साथ विशेष संबंध बनाए हैं। अब्राहम अकॉर्ड को देखते हुए गल्फ के देशों और इजराइल के बीच स्थिति का सामान्य होना बस समय की बात है। इस स्थिरता के आधार पर बनाई गई इंडिया–इजराइल–UAE–U.S. ( I2U2 ) व्यापार पहल और हाल में लांच हुए इंडिया–मिडिल ईस्ट–यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर, इजराइल–हमास युद्ध का शिकार हो सकते हैं। इस युद्ध पर अरब के देशों और आर्गेनाइजेशन फॉर इस्लामिक कोऑपरेशन ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। इसी हफ्ते भारत के लिए US एंबेसडर, एरिक गार्सेटी ने माना की युद्ध से इन्फ्रास्ट्रक्चर के प्रयास रुक सकते हैं लेकिन लंबे समय में यह प्रयास जरूर पूरे होंगे।
भारत के साथ ईरान के संबंध, इजराइल का मुख्य विरोधी, जो चाबहार पोर्ट और मध्य एशिया और रशिया को जोड़ने वाले इंटरनेशनल नॉर्थ–साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर के कारण मजबूत हुए थे इनपर असर पड़ सकता है। ऐसा दिखता है की मोदी सरकार एक पक्ष को दूसरे की तुलना में ज्यादा स्पष्टता से चुन रही है। इजराइली कंपनियों ने फिलिस्तीनी मजदूरों की जगह भारत से एक लाख लोगों को काम पर रखने की इच्छा जताई है। भारत ने अब तक इसपर कोई सहमति नहीं जताई है, उसे ध्यान है कि ऐसा करने से गल्फ देशों में काम कर रहे 80 लाख भारतीय प्रभावित हो सकते हैं।
Source: The Hindu
Source link