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What is IMEC? How the growing crisis has made IMEC necessary as soon as the war in West Asia started, read the hindu editorial of January 22. | The Hindu हिंदी में: IMEC क्या है? पश्चिम एशिया में युद्ध के बढ़ते संकट ने IMEC को कैसे जरूरी बना दिया है, पढ़िए 22 जनवरी का एडिटोरियल

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53 मिनट पहले

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सुएज नहर पूरब और पश्चिम के बीच व्यापर की रीढ़ की हड्डी है लेकिन यमन में युद्ध शुरू होने के साथ ही समुद्री मार्ग पर शिपिंग उद्योग का विश्वास तेजी से घट रहा है।

यमन में लड़ाई ने इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकनॉमिक कॉरिडोर (IMEC) की जरूरत को और पक्का कर दिया है। गाजा युद्ध ने IMEC को पूरी तरह से खत्म भले ही न किया हो लेकिन इसे गंभीर झटका जरूर दिया है।

चेन्नई सेंटर फॉर चाइना स्टडीज के डायरेक्टर-जनरल शेषाद्री वासन का कहना है कि भले ही गाजा युद्ध के कारण शुरू हुई यमन में लड़ाई जल्द खत्म हो जाये, फिर भी सुएज केनाल के विकल्प खोजने की जरूरत महसूस हो रही है।

आलोचकों का कहना है कि गाजा के युद्ध के समाप्त होने के कई सालों बाद भी अरब के आम लोग सऊदी अरब और इजराइल के बीच किसी व्यापारिक संबंध की इजाजत नहीं देंगे।

इसी बीच, 9 सितंबर को यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका की सरकार ने IMEC पर एक समझौते से जुड़े एक प्रेस रिलीज में वादा किया था कि सभी हिस्सेदार 60 दिनों के अंदर मिलकर इस पहल की एक विस्तृत रुपरेखा तैयार कर लेंगे।

हालांकि, गाजा युद्ध की वजह से यह बैठक नहीं हो सकी है।

भू-राजनीति IMEC के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में अध्ययन के वाइस प्रेसिडेंट हर्ष पंत कहते हैं कि तुर्किये पहले ही IMEC के प्रति अपनी नाराजगी को स्पष्ट कर चुका है।

इसने सऊदी अरब और इजराइल की जगह इराक और खुद को मेडिटरेनियन क्षेत्र तक पहुंचने के विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया है।

लेकिन पंत का मानना है कि भविष्य में तुर्किये को इस परियोजना से जोड़ा जायेगा। उन्हें यह भी उम्मीद है कि अब्राहम एकॉर्ड के जरिये इजराइल और अरब के बीच जिस लम्बे व्यापारिक और रणनीतिक रिश्ते की नींव रखी गई थी, वह जारी रहेगी।

पंत कहते हैं कि राजनीति में डोनाल्ड ट्रम्प की वापसी के दो नतीजे होंगे। यदि व्यापार को प्राथमिकता देने वाले ट्रम्प दोबारा अमेरिका के राष्ट्रपति बनते हैं, तो IMEC को उनका समर्थन मिलेगा।

इस बड़े ग्लोबल प्रोजेक्ट को लेकर उनके धैर्य और दिलचस्पी संदेह के घेरे में हैं। इससे IMEC के लिए अमेरिका की प्रतिबद्धता पर चीन की चिंता जायज है।

हाइड्रोजन और उसका भरा जाना

व्यापार, बिजली और डिजिटल केबल के अलावा IMEC के जरिए हाइड्रोजन पाइपलाइन ले जाने का प्रस्ताव दिया गया है। ऐसे में जब दुनिया कार्बन से दूरी बना रही है, जीवाश्म (फॉसिल) आधारित ईंधन जैसे कि मीथेन, जो हाइड्रोजन पैदा करते हैं, बैटरी या अन्य ‘ग्रीन’ उपायों के इस्तेमाल के व्यावहारिक बनने तक ऊर्जा का प्रमुख स्रोत बने रहेंगे।

गल्फ देशों की जीवाश्म ईंधन से मिलने वाली हाइड्रोजन की सप्लाई से कमाई होती रहेगी। इस दिशा में भी यह कॉरिडोर उपयोगी साबित होगा।

हालांकि, भारत के लिए IMEC में रेल और सड़क के रास्ते कंटेनर भेजना एक बड़ा आकर्षण है। कंटेनर के इस्तेमाल से व्यापार में तेजी आती है और पोर्ट की लागत कम होती है।

2022 में, भारत की नेशनल लॉजिस्टिक्स पालिसी में 2030 तक लॉजिस्टिक्स की लागत को कम करके दुनिया के औसत के बराबर लाने का लक्ष्य रखा गया है। इस लक्ष्य को पाने के लिए कंटेनर के इस्तेमाल को बढ़ाना जरूरी है।

भारत में, लगभग 70% कंटेनर सड़क मार्ग से जाते हैं, लेकिन इन्ना रासु करुणेसन का कहना है कि आदर्श स्थिति में कंटेनर 30% सड़क, 30% रेल और बाकी तटीय और अंतर्देशीय शिपिंग के जरिये भेजा जाना चाहिए। करुणेसन शिपिंग उद्योग में कार्यरत हैं, जिनके लंबे करियर में चेन्नई कंटेनर टर्मिनल और अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन, गुजरात का नेतृत्व शामिल हैं।

वे कहते हैं कि,‘सड़क पर कंटेनर की आवाजाही तेज है लेकिन रेल के जरिए कंटेनर की आवाजाही सस्ती है।‘ IMEC के दो पोर्ट मुंद्रा और जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (JNPT) को विशेष रेल माल ढुलाई कॉरिडोर से जोड़ा गया है, लेकिन इन रेल परियोजनाओं का विस्तार दक्षिण भारत में नहीं हुआ है।

दक्षिण में कंटेनर आमतौर पर चेन्नई, तूतीकोरिन/थूथुकुडी आदि के जरिये कोलंबो ट्रांसशिपमेंट कंटेनर टर्मिनल तक पहुंचाए जाते हैं।

दक्षिण द्वारा IMEC का लाभ उठाने की सम्भावना है, जो वितरण के समय को 40% तक कम करने का वादा करता है। इसके लिए रेल माल ढुलाई कॉरिडोर को पुरे भारत में अपना दायरा फैलाना होगा। संभावित रूपरेखा इस बीच, IMEC को एक बड़ी रूकावट को दूर करना होगा।

हाइफा पश्चिम के साथ भारत को जोड़ने वाला मुख्य मार्ग नहीं हो सकता है क्योंकि वहां से गुजरने वाले कंटेनर मुंद्रा या JNPT के मुकाबले लगभग एक तिहाई और भारत के मौजूदा कंटेनर निर्यात का दसवां हिस्सा है।

हाइफा पोर्ट में अडानी की हिस्सेदारी के कारण, हो सकता है कि अडानी के स्वामित्व वाले मुंद्रा पोर्ट के साथ इसके बेहतर इस्तेमाल की योजना बने।

अम्मार मालिक, ऐड डाटा में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के लिए चीनी विकास फाइनेंस कार्यक्रम का नेतृत्व करते हैं। यह शोध प्रयोगशाला विलियम एंड मेरी यूनिवर्सिटी यूनाइटेड स्टेट्स में स्थित है।

उनका कहना है कि IMEC में भारत के अलावा यूनाइटेड स्टेट्स, यूरोप और सऊदी से निवेश आ सकता है, जिसका उपयोग पोर्ट के काम करने की क्षमता को बढ़ाने में किया जायेगा।

उनका कहना है कि अडानी पोर्ट्स के स्वामित्व वाले कोलंबो डीप वाटर कंटेनर टर्मिनल के लिए यूनाइटेड स्टेट्स इंटरनेशनल डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन द्वारा किया गया निवेश, हाइफा के लिए एक नमूना हो सकता है।

लेखक: एम. कल्याणरमन एक समुद्री इंजीनियर और पत्रकार हैं।

Source: The Hindu

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