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What could be the future strategy for INDIA alliance, read the hindu editorial of 13 December | INDIA गठबंधन के लिया क्या हो सकती है आगे की रणनीति, पढ़िए 13 दिसंबर का एडिटोरियल

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10 घंटे पहले

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हाल ही में हुए विधान सभा चुनावों में कांग्रेस को मिली हार ने INDIA गठबंधन को दोबारा बहस के केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया है।

तीनों राज्यों (मध्यप्रदेश, छतीसगढ़ और राजस्थान) में दोनों राष्ट्रीय पार्टियां, कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी टक्कर थी। विपक्षी गठबंधन जिसकी शुरुआत बड़े धूमधाम से कुछ प्रमुख मीटिंग के साथ हुई, तीन महीने तक इन चुनावों के दौर में पूरी तरह सुस्त पड़ गई।

हालांकि, इन चुनावों को अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के साथ जोड़ कर देखा जा रहा है। गुजरते समय के साथ इस अभियान ने नेताओं के बीच के मतभेद और गठबंधन की कमजोरी को स्पष्ट कर दिया है। गठबंधन की घोषणा के बाद भोपाल में विपक्ष की एक साझा रैली होनी थी, जो नहीं हो पाई।

सीटों के बंटवारे और साझा घोषणा पत्र जारी करने जैसे जरूरी मामलों में भी पिछले तीन महीनों में कोई प्रगति नहीं हुई है। इसके साथ ही 6 दिसंबर को अचानक बुलाई गई मीटिंग भी जमीनी कार्यकर्ताओं की बैठक बनकर रह गई।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन और समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बैठक में शामिल न हो पाने की बात कही।

एक कमजोर नींव पर खड़ा गठबंधन

इस अभियान ने स्पष्ट कर दिया कि INDIA गठबंधन सीटों के बंटवारे और विचारधारा के मामले में कमजोर नींव पर खड़ा है। मध्य प्रदेश में सीटों के बंटवारे पर सहमति न बनने के बाद कांग्रेस के कमलनाथ और समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव में तीखी बयान बाजी भी हुई थी।

वहीं, DMK मिनिस्टर उदय निधि स्टालिन के द्वारा सनातन धर्म पर दिए बयान ने गठबंधन को एक कदम पीछे लेने पर मजबूर कर दिया। हाल ही में DMK के सांसद सेंथिल कुमार ने गोमूत्र पर जो टिप्पणी की उसने गठबंधन में बेचैनी बढ़ाकर रख दी।

कांग्रेस के नेता एमपी कार्तिक चिदंबरम ने इस टिप्पणी को असंसदीय बताते हुए स्थिति को संभालने की कोशिश की, यह दोनो समस्याएं कुछ हद तक जुड़ी हुई हैं।

जहां सनातन धर्म और गोमूत्र जैसे मामलों से गठबंधन को एक मिली जुली मजबूत विचारधारा सामने रखने में परेशानी हो रही है, वहीं सीटों के बंटवारे पर तीखी टिप्पणी से बीजेपी के उस दावे को बल मिलता है, जिसमें उन्होंने इस गठबंधन को मौका देखकर किया हुआ गठबंधन कहा है।

तीन महीने तक कोई कार्रवाई न करने और आम चुनाव के पांच महीने दूर होने की स्थिति में, INDIA गठबंधन के पास इन समस्याओं को सुलझाने के लिए बहुत कम समय बचा है।

यदि विचारधारा के ये मतभेद सामने आते हैं, तो उस स्थिति में विभिन्न पार्टियों के प्रमुख नेताओं में आपसी भाईचारा दिखाने के बाद भी ये गठबंधन लोगों के बीच असफल हो सकता है।

वोटर समर्थक हो सकते हैं और कार्यकर्ता विरोधी, विचारधारा के साथियों का सहयोग करने से इनकार कर सकते हैं।

दुनिया में इस बात के तमाम उदाहरण देखे गए हैं, जिनमें अलग-अलग विचारधारा के गठबंधन को विचारधारा में मतभेद के कारण नुकसान हुआ है। वोटर अपनी नाराजगी जाहिर करने के लिए अपनी पसंदीदा पार्टी को वोट देने के बजाय घर बैठे रह सकते हैं या किसी अन्य प्रतियोगी पार्टी को वोट दे सकते हैं।

दोहरी रणनीति INDIA गठबंधन की राजनीतिक पार्टियों को 2024 के चुनाव को अपनी पार्टी के विस्तार के मौके की तरह नहीं देखना चाहिए। यदि वे ऐसा करते हैं तो सीटों के बंटवारे का मामला उलझ जाएगा और पार्टियां समझौते के लिए तैयार नहीं होंगी।

साथ ही, पार्टियों को अपने सहयोगियों द्वारा विचारधारा के आधार पर किए वादों को भी निभाना होगा। गठबंधन में DMK जैसे सहयोगियों को, नास्तिकता और उत्तर भारत के वोटरों को मिल रहे लाभ पर उग्र बयानों को बंद करना होगा।

इसके स्थान पर, उन्हें द्रविड़ राजनीति के अन्य पहलुओं और जनकल्याण से जुड़े अपने कामों को लेकर जनता के बीच जाना होगा। जैसे कि हाल में मिड डे मील के तहत नाश्ता भी दिया जाने लगा है।

दूसरा, INDIA गठबंधन के लिए जरूरी है कि कार्यकर्ता विभिन्न पार्टियों की विचारधारा के आधार पर किए हुए वादों से बहुत चिंतित न हों और संभावित वोटर, पार्टियों की विचारधारा पर मतभेद को लेकर बहुत आशंका न करें।

इस दोहरे लक्ष्य को पाने के लिए जरूरी है कि गठबंधन यह सुनिश्चित करें की कार्यकर्ता और वोटर सत्ता के खिलाफ नाराजगी के आधार पर वोट करें। आसान भाषा में समझे तो सत्ता विरोधी नाराजगी मौजूदा सरकार की नीतियों के असफलता का नतीजा हैं।

महंगाई से लेकर बेरोजगारी तक जमीनी स्तर पर भाजपा के खिलाफ लोगों के बीच स्पष्ट नाराजगी है। मगर विपक्ष अब तक इस नाराजगी का लाभ उठाने, तथा इसे वोटरों और कार्यकर्ताओं को एकजुट करने के लिए इस्तेमाल करने में असफल रहा है।

इसके लिए न सिर्फ उन्हें निरंतर और सावधानी से तैयार किए अभियान द्वारा मोदी सरकार की नाकामियों को सामने लाना होगा बल्कि अर्थव्यवस्था को सुधारने के उपायों की साफ नजर भी जनता के सामने रखनी होगी।

चुनाव में बीजेपी की जीत बहुत हद तक उसके एजेंडा को तय करने और उसे दमदार तरीके से लगातार चलाने की क्षमता पर निर्भर है। ऐसे में विपक्ष के पास उस पर प्रतिक्रिया देने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता है, विपक्ष को इस पैटर्न पर रोक लगाना होगा।

यदि INDIA गठबंधन चर्चा को अपने हिसाब से तय करता है और अर्थव्यवस्था की समस्याओं पर आधारित एक भरोसेमंद अभियान चलता है, तो वह अपनी कमियों के बावजूद जीत की संभावना को काफी बढ़ा लेगा, इसलिए अंत में, INDIA गठबंधन के लिए अर्थव्यवस्था का मुद्दा महत्वपूर्ण हो जाता है।

यदि INDIA गठबंधन चर्चा को अपने हिसाब से तय करता है और अर्थव्यवस्था की समस्याओं पर आधारित एक भरोसेमंद अभियान चलता है, तो वह अपनी कमियों के बावजूद जीत की संभावना को काफी बढ़ा लेगा।

लेखक:ओंकार पुजारी

Source: The Hindu

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