




तेल अवीव/वॉशिंगटनएक घंटा पहले
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तस्वीर 19 अक्टूबर की है। इजराइल पर हमास के हमले के बाद प्रेसिडेंट बाइडेन तेल अवीव पहुंचे थे और उन्होंने नेतन्याहू को गले लगाया था।
इजराइल और हमास की जंग का शिकार गाजा के आम लोग ज्यादा बन रहे हैं। यही वजह है कि इजराइल का सबसे अहम सहयोगी अमेरिका भी अब इजराइल पर सीजफायर या जंग खत्म करने का दबाव बढ़ाता जा रहा है।
दूसरी तरफ, इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और उनकी वॉर कैबिनेट सीजफायर के लिए कतई तैयार नहीं है। अमेरिका में इसी साल प्रेसिडेंशियल इलेक्शन होने वाले हैं। प्रेसिडेंट जो बाइडेन की डेमोक्रेटिक पार्टी को डर है कि अगर जंग जल्दी नहीं रुकी तो उन्हें इसका सियासी खामियाजा भुगतना होगा। अब बाइडेन-नेतन्याहू आमने-सामने नजर आते हैं। रोज की बयानबाजी के चलते दोनों के रिश्ते खराब हुए हैं।
यह तमाम बातें ‘न्यूयॉर्क पोस्ट’ के एनालिसिस में कही गईं हैं। आगे इसे तफ्सील से समझते हैं।

अमेरिका और इजराइल के बीच मतभेद इस बात पर भी हैं कि जंग के बाद गाजा पर हुकूमत कौन करेगा। इजराइल इसे अपने कब्जे में रखना चाहता है, ताकि हमास फिर कभी सिर न उठा सके। दूसरी तरफ, अमेरिका को अरब और मुस्लिम वर्ल्ड को भी साथ लेकर चलना है।
बाइडेन-बेंजामिन के रिश्ते कभी अच्छे नहीं रहे
- न्यूयॉर्क पोस्ट के इस एनालिसिस को मशहूर स्ट्रैटेजिक अफेयर एक्सपर्ट और कई किताबों के लेखक माइकल गुडविन ने लिखा है। इसके मुताबिक- बाइडेन और नेतन्याहू कभी न तो अच्छे दोस्त रहे और न सहयोगी। दोनों के बीच हमेशा सियासी मतभेद रहे। 7 अक्टूबर को जब हमास ने इजराइल पर हमला किया और वहां 1200 आम नागरिक मारे गए तो इजराइल ने गाजा पर हमला किया।
- यही वो वक्त था जब पहली बार दोनों नेता करीब नजर आए। 19 अक्टूबर को बाइडेन तेल अवीव गए तो नेतन्याहू से गले मिले। दुनिया के लिए यह तस्वीर चौंकाने वाली थी। कुछ लोगों को लगा कि ये शादी बेमेल ही सही, लेकिन लंबी चलेगी। हालांकि, ये गलतफहमी अब तेजी से दूर होने लगी है।
- अमेरिकी मीडिया में पिछले दिनों एक हेडलाइन ने खूब सुर्खियां बटोरीं। इसमें कहा गया था- बाइडेन की वॉर्निंग : दुनिया का सपोर्ट खो रहा है इजराइल…। इसके बाद दोनों देशों में बयानबाजी शुरू हुई और ये अब तक जारी है।

7 अक्टूबर के बाद जब इजराइल ने गाजा पर हमला किया तो कुछ दिन नेतन्याहू को अमेरिका में समर्थन मिला, लेकिन अब यह कम होता जा रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि इजराइली हमलों में ज्यादातर गाजा के आम लोग मारे जा रहे हैं।
तनाव की असली वजह
जंग जारी है और ये कब खत्म होगी? किसी को नहीं पता। इसके बावजूद बहस इस बात पर हो रही है कि जंग के बाद गाजा पर हुकूमत कौन करेगा। इजराइल इसे अपने कब्जे में रखना चाहता है, ताकि हमास फिर कभी सिर न उठा सके। दूसरी तरफ, अमेरिका को अरब और मुस्लिम वर्ल्ड को भी साथ लेकर चलना है, लिहाजा वो चाहता है कि जंग के बाद फिलिस्तीन अथॉरिटी गाजा का शासन संभाले।
इस मुद्दे पर बाइडेन और नेतन्याहू कई बयान दे चुके हैं और इससे तनाव बढ़ रहा है। फिक्र की बात यह है कि यह बयानबाजी पब्लिक प्लेटफॉर्म्स पर हो रही है। मतभेद पहले भी थे, लेकिन ये बातें डिप्लोमैसी के जरिए छिपा ली जाती थीं।

7 अक्टूबर को इजराइल पर हमले के बाद नेतन्याहू की अगुआई में एक वॉर कैबिनेट बनाई गई थी। इसमें विपक्षी नेता भी शामिल थे।
बाइडेन की सियासी मजबूरी
- 7 अक्टूबर के बाद जब इजराइल ने गाजा पर हमला किया तो कुछ दिन नेतन्याहू को अमेरिका में समर्थन मिला, लेकिन अब यह कम होता जा रहा है। ये जानते हुए भी कि जंग की शुरुआत हमास के वहशियाना हमले से हुई थी। उसने 1200 लोगों को मारा। महिलाओं से रेप किया और बच्चों को भी नहीं छोड़ा।
- बाइडेन को मालूम है कि आम अमेरिकी इस जंग का खात्मा चाहते हैं। ज्यादातर वो लोग हैं जो डेमोक्रेटिक पार्टी के सपोर्टर और वोटर हैं। दूसरी बात, ये है कि बाइडेन 2024 में भी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को चुनौती देना चाहते हैं। लिहाजा, इजराइल का अड़ियल रवैया उन्हें सियासी नुकसान पहुंचा रहा है। वो इलेक्शन कैम्पेन शुरू करने से पहले जंग खत्म या कम से कम लंबा सीजफायर कराना चाहते हैं। नेतन्याहू इसके लिए तैयार नहीं हैं।
- आम तौर पर अमेरिकी मुस्लिम डेमोक्रेट पार्टी का समर्थन करते हैं। पिछले दिनों 9 राज्यों के मुस्लिमों ने एक संगठन के बैनर तले यह ऐलान किया कि वो अगले चुनाव में बाइडेन को समर्थन नहीं देंगे। बाइडेन और डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए ये खतरे की घंटी है।
- दूसरी तरफ, अमेरिकी राष्ट्रपति के लिए यह भी आसान नहीं कि वो इजराइल को इस जंग में अकेला छोड़ दें, क्योंकि ट्रम्प और रिपब्लिकन पार्टी ही नहीं बल्कि यूरोप के कई देश इससे नाराज हो सकते हैं। अमेरिका को खुद भी कई मामलों में इसका सीधा नुकसान होना तय है।

अमेरिका और अरब देश चाहते हैं कि इजराइल और हमास के बीच एक सीजफायर और हो। इसमें सबसे पहले बंधकों की रिहाई कराई जाए। इजराइल इसके लिए बिल्कुल तैयार नहीं है। उसका कहना है कि इसका फायदा हमास को होगा।
बीच का रास्ता क्या हो सकता है
- अमेरिकी डिफेंस मिनिस्टर लॉयड ऑस्टिन और NSA जेक सुलिवन पिछले हफ्ते अरब वर्ल्ड और इजराइल गए थे। अब कोशिश ये हो रही है कि एक सीजफायर और कराया जाए। इसमें हमास के कब्जे में मौजूद 138 बंधकों की रिहाई तय हो और गाजा के सिविलियन्स को बुनियादी सुविधाएं देने पर एक्शन प्लान अमल में लाया जाए।
- इजराइल को लगता है कि सीजफायर का फायदा हमास को होगा और उसके आतंकी फिर एकजुट होकर हमले करेंगे। लिहाजा, हमास पर आखिरी और जबरदस्त हमला किया जाए ताकि वो फिर कभी सिर न उठा सके। बाइडेन ने पिछले हफ्ते पार्टी के डोनेशन कैम्पेन की शुरुआत की और इस दौरान इजराइल पर अंधाधुंध बमबारी का आरोप लगाया। इससे पार्टी को सबसे ज्यादा फंडिंग करने वाले यहूदी वोटर नाराज हो गए।
- इजराइल का कहना है कि अमेरिका पर जब 9/11 का हमला हुआ था तो उसने हर मुमकिन मदद दी थी। आज इजराइल का वजूद खतरे में है, लेकिन अमेरिका शर्तें थोपने की कोशिश कर रहा है। ट्रम्प खुलेआम नेतन्याहू और इजराइल का सपोर्ट कर रहे हैं। इससे उनकी पार्टी को डोनेशन भी ज्यादा मिल रहा है और व्हाइट वोटर्स का ज्यादातर सपोर्ट भी।
- सवाल ये है कि क्या बाइडेन अमेरिका की फॉरेन पॉलिसी और पॉलिटिकल स्ट्रैटेजी में बैलेंस बनाकर रख पाएंगे? वो कोशिश तो कर रहे हैं, लेकिन इसके मनमाफिक नतीजे मिलते नजर नहीं आते। ऊपर से ईरान का हमास को खुला समर्थन उनकी परेशानी को दोगुना कर रहा है।
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