


वॉशिंगटन1 मिनट पहले
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रिपोर्ट के मुताबिक- ग्लेशियर्स के पिघलने से क्लाइमेट बैलेंस खतरे में है। (प्रतीकात्मक)
UN की एक क्लाइमेट रिपोर्ट में 2023 को अब तक का सबसे गर्म साल बताया गया है। यह वर्ल्ड मेटिरियोलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन (WMO) ने जारी की है। इसके मुताबिक- ग्रीन हाउस गैस बढ़ रही हैं और इनसे पर्यावरण को बेहद गंभीर खतरा पैदा हो चुका है। इसके अलावा ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। इसकी वजह भी बढ़ता तापमान है।
इस रिपोर्ट के नतीजों में साफ तौर पर कहा गया है कि क्लाइमेट से जुड़ी इन्हीं केसेज के चलते धरती के वजूद को खतरा पैदा हो गया है और यह तबाही की कगार पर है।
WMO की रिपोर्ट में क्या खास
- रिपोर्ट कहती है- ग्रीन हाउस गैसेज बढ़ रही हैं। पिछला दशक सबसे गर्म रहा है। जमीन और पानी का तापमान तेजी से बढ़ रहा है। दुनिया के कई हिस्सों में जो हीट वेव्स यानी लू चल रही है, उसके चलते समुद्र का तापमान बढ़ रहा है। इसकी वजह से सबसे बड़ा खतरा ग्लेशियर्स को है, क्योंकि इस बढ़ते तापमान की वजह से इनके पिघलने के सिलसिला काफी तेज हुआ है। इसकी वजह से पर्यावरण संतुलन बिगड़ चुका है।
- रिपोर्ट तैयार करने के लिए 10 साल का डेटा जुटाया गया। इसके एनालिसिस से यह भी साफ हो जाता है कि गुजरा दशक सदी का सबसे गर्म दशक रहा। अगर अब भी इससे सबक नहीं लिया गया तो हमारे इस ग्रह के लिए बचाव का रास्ता खोजना मुश्किल हो जाएगा।

रिपोर्ट तैयार करने के लिए 10 साल का डेटा जुटाया गया। इसके एनालिसिस से यह भी साफ हो जाता है कि गुजरा दशक सदी का सबसे गर्म दशक रहा। (प्रतीकात्मक)
UN चीफ बोले- हम तबाही की कगार पर
- इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद UN के सेक्रेटरी जनरल एंतोनियो गुतेरेस ने गंभीर चिंता जताई। कहा- यह रिपोर्ट बिल्कुल साफ कर देती है कि हमारा यह प्लेनेट तबाही की कगार पर है। धरती हमको बता रही है कि हालात कितने खराब हो चुके हैं। जिस स्तर से पॉल्यूशन बढ़ रहा है, उससे साफ हो जाता है कि अगर हम बदलाव करना चाहते हैं तो यह बहुत तेजी से करने होंगे।
- यूरोपियन यूनियन की कॉपरनिकस सर्विस के मुताबिक- मार्च 2023 से लेकर फरवरी 2024 तक तापमान में करीब डेढ़ डिग्री की बढ़ोतरी हुई। एवरेज टेम्परेचर भी 1.56 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया। हालांकि, इन 12 महीनों की शुरुआत इतने खराब आंकड़ों के साथ नहीं हुई थी। बाद में हालात बिगड़ते गए और आखिरकार यह 12 महीने सबसे गर्म साबित हुए।

रिपोर्ट तैयार करने के लिए 10 साल का डेटा जुटाया गया। इसके एनालिसिस से यह भी साफ हो जाता है कि गुजरा दशक सदी का सबसे गर्म दशक रहा। (प्रतीकात्मक)
1950 के बाद सबसे ज्यादा ग्लेशियर पिघले
- दोनों ही रिपोर्ट्स के आंकड़े परेशान करने वाले हैं। इनके मुताबिक- 90% समुद्री क्षेत्र को हीट वेव्स का सामना करना पड़ रहा है। 1950 के बाद सबसे ज्यादा ग्लेशियर पिघले। अंटार्कटिक में ग्लेशियर की मौजूदगी सबसे कम रही।
- यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन स्कूल फॉर एनवॉयर्नमेंट के डीन जोनाथन ओवरपेक कहते हैं- सबसे ज्यादा फिक्र की बात यह है कि हमारी धरती बिखराव या कहें तबाही की तरफ बढ़ रही है। इसे मेल्टडाउन फेज कह सकते हैं। इसको बैलेंस देने वाले हिमपर्वत बहुत तेजी से पिघल रहे हैं।
- रिपोर्ट में कई घटनाओं का जिक्र किया गया। मसलन, दुनिया के कई हिस्सों में मौसम में बहुत बड़े बदलाव दर्ज किए गए। जैसे कहीं लू चली तो कहीं बाढ़ आई। कहीं सूखा रहा तो कहीं जंगलों में भीषण आग लगी। रही सही कसर तूफानों ने पूरी कर दी।
- इस रिपोर्ट में अगर तमाम परेशान करने वाली बातें तो एक हिस्सा उम्मीद की किरण भी है। इसके मुताबिक- रिन्यूएबल एनर्जी में वो ताकत है जो हमें रास्ते पर ला सकता है। विंड और सोलर एनर्जी का इस्तेमाल बढ़ाना होगा। 2023 तक इनमें 50 फीसदी का इजाफा हुआ।
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