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There are little chances of peace amid the deteriorating situation in Gaza, read The Hindu editorial of January 11 | The Hindu हिंदी में: गाजा में बिगड़ते हालात के बीच शांति की संभावनाएं कम ही हैं, पढ़‍िए 11 जनवरी का एडिटोरियल

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1 घंटे पहले

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जब गाजा युद्ध की गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दे रही है, पश्चिमी एशिया में एक बड़े युद्ध की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है।

गाजा युद्ध अपने तीसरे महीने में पहुंचने के साथ ही लेबनान, इराक, यमन और यहां तक कि ईरान तक फैल चुका है। 2 जनवरी, को बेरूत के हमास दफ्तर पर एक इजराइली ड्रोन हमले में सालेह अल–अरौरी की हत्या हो गई। वह विदेश में रह रहे हमास नेतृत्व का उप प्रमुख था।

अगले ही दिन, ईरान के केरमान में हुए दो धमाकों में 95 लोगों की मौत हो गई। ये सभी लोग अल कूड्स फोर्स के पूर्व जनरल कासिम सुलेमानी, की मृत्यु की चौथी वर्षगांठ पर उनकी कब्र के आगे अपनी संवेदना व्यक्त करने के लिए इकट्ठा हुए थे। भले ही इसकी जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट ने ली है, कई ईरानी शक करते हैं कि इसमें इजराइल का हाथ है।

4 अक्टूबर को यूनाइटेड स्टेट्स ने ईरान से जुड़े एक सैन्य गुट के प्रमुख की बगदाद में हत्या की खबर की घोषणा की। माना जाता है कि वह गाजा युद्ध की शुरुआत से ही अमरीकी लक्ष्यों पर हमला कर रहा था। यह हमले उस समय में हुए हैं जब लाल सागर में झगड़े जारी हैं। इन्हीं हमलों के चलते, हौथिस ने व्यापारिक जहाजों पर ड्रोन और मिसाइल से हमले किए हैं जिसके खिलाफ अमेरिका की कठोर प्रतिक्रिया हो सकती है। हौथिस विद्रोहियों की मांग है कि गाजा युद्ध से प्रभावित फिलिस्तीनियों को तुरंत मानवीय मदद पहुंचाई जाए। इन हमलों ने पहले से अस्थिर इस क्षेत्र की चिंताएं बढ़ा दी हैं। अक्टूबर की शुरुआत से ही गाजा पर इजराइल के हमले ने मौत और बर्बादी का एक दौर शुरू कर दिया है।

पिछले तीन महीनों में 22,000 से अधिक फिलिस्तीनी लोग मारे जा चुके हैं, जिनमें अधिकतर महिलाएं और बच्चे हैं। लगभग 20 लाख लोग अपने घरों से बेघर हो चुके हैं, यह फिलिस्तीन के इतिहास में बेघर होने की सबसे बड़ी घटना है। गाजा के इन 20 लाख से अधिक लोगों पर मानवीय संकट गहराता जा रहा है।

नेतन्याहू उकसाने की कार्यवाही कर सकते हैं
इजराइली सेना ने अपनी सैन्य कार्रवाई को वेस्ट बैंक में भी बढ़ा दिया है। लगभग 300 फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं, कई घर बर्बाद किए गए और कई हजार को कैद में लिया गया है। इजराइल के कैबिनेट मंत्री सैनिकों द्वारा की गई इस हिंसा का समर्थन कर रहे हैं। वे गाजा से फिलिस्तीनियों को हटाकर यहूदी लोगों को बसाना चाहते हैं।

सबसे बड़ी चिंता इस बात की है कि निराश इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू तनाव को बढ़ाने का रास्ता चुन सकते हैं। गाजा में बड़े पैमाने पर हत्याएं करने के बाद भी उपलब्धि के नाम पर इजराइल के पास दिखाने के लिए कुछ नहीं है। हमास से लड़ने की क्षमता और इस अभियान को खत्म करने के अपने निश्चय के बावजूद, गाजा में किसी प्रमुख हमास के नेता को पकड़ा नहीं जा सका है, जबकि जमीनी लड़ाई में हमास इजराइली सैनिकों को लगातार नुकसान पहुंचा रहा है। इजराइल के सुरक्षा बलों ने कुछ हजार महिलाओं और बच्चों को कैद किया है ताकि हमास के नेताओं की स्थिति का पता लगाया जा सके, लेकिन अब तक उन्हें इसमें कोई सफलता नहीं मिली है।

साथ ही, यह चिंता जताई जा रही है कि अल अरौरी की हत्या हमास के खिलाफ लड़ाई में अपनी सफलता का दावा करने के लिए की गई है। सालेह –अल अरौरी एक आसान शिकार था। वह भले ही समाज के नेतृत्व में प्रमुख मौजूदगी रखता था, हाल के सालों में वह बेरूत में रहकर ईरान और हिजबुल्ला के बीच मध्यस्थता का काम कर रहा था। ज्यादातर रिपोर्ट में माना गया है कि 7 अक्टूबर 2023 के हमले की घटना से उसका कोई लेना-देना नहीं था।

जल्द शांति की उम्मीद कम ही है
इन सभी लक्षित हत्याओं से कोई फायदा नहीं होता है। जहां एक तरफ मरे हुए नेता के स्थान पर जल्दी ही किसी और को नियुक्त कर दिया जाता है, ऐसी हत्याएं आपसी दुश्मनी और तनाव को बढ़ाती हैं। इस बात की चिंताजनक संभावना है कि नेतन्याहू क्षेत्रीय टकराव को बढ़ाने से परहेज नहीं करेंगे। 7 अक्टूबर को राजनीतिक और सैन्य विफलताओं के कारण हुए हमले के बाद इजराइल ने सैन्य कार्यवाही के जरिए कोई सफलता हासिल नहीं की है। अब जबकि सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक सुधारों के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है, प्रधानमंत्री को अपना इस्तीफा देना पड़ सकता है, इस बात की प्रबल संभावनाएं हैं कि उन पर गिरफ्तारी और फिर जेल में डाले जाने की कार्यवाही हो जाए।

क्या निराश नेतन्याहू इस मौके का फायदा उठा कर फिलिस्तीनी विरोध को कुचलने, हिजबुल्ला को मिटाने और ईरान जैसे खतरे को कमजोर करने के लिए कोशिश नहीं करेंगे? इस बात की संभावना इसलिए फिर बढ़ जाती हैं कि गाजा युद्ध के पिछले 3 महीनों में, किसी भी पक्ष ने इस युद्ध को खत्म करने के लिए न ही कोई रणनीति और न ही कोई दृष्टि दिखाई है। इस युद्ध के समाप्त होने के बाद क्या होगा, यह किसी को नहीं पता है। हमास को मिटाने के आक्रामक दावों और कब्जे वाले क्षेत्र में एक समुदाय के लोगों के सफाए के अलावा इजराइल ने स्पष्ट नहीं किया है कि इस युद्ध से वह क्या हासिल करना चाहता है। यह भी नहीं बताया गया है कि युद्ध रुकने के बाद गाजा का प्रबंधन कैसे किया जाएगा।

निश्चित रूप से लंबे समय तक शांति बनाए रखने की प्रक्रिया पर कोई चर्चा नहीं हो रही है। इसी वजह से गाजा में बड़ी संख्या में हत्याएं और नेताओं की लक्षित हत्याएं एकमात्र उद्देश्य बनकर रह गए हैं।

सऊदी अरब की भूमिका
यूनाइटेड स्टेट्स शुरू से ही एक नीति की तलाश में रहा है। इजराइल को पूरी तरह से राजनीतिक और सैन्य समर्थन देने के अलावा बाइडेन प्रशासन ने मानवीय चिंताओं पर झूठी सहानुभूति ही दिखाई है। हालांकि, जमीनी स्तर पर उन्हें भी कुछ हासिल नहीं हुआ है। इस क्षेत्र ने अमेरिका के दबदबे को पहले ही नकार दिया है और अब शांति प्रक्रिया में उसकी कोई प्रमुख भूमिका नहीं दिखती है।

वाशिंगटन में इजराइल के दक्षिणपंथियों ने सरकार को लाचार कर, उसे निष्क्रिय बना दिया है। अरब के देशों ने न तो कोई आवाज उठाई है, न ही किसी नेतृत्व का प्रदर्शन किया है। अब तक बिना किसी नतीजे की बैठकों और प्रस्तावों को जारी करने के अलावा, किसी आम सहमति तक पहुंचने के कोई संकेत नहीं दिखे हैं। फिलिस्तीन के सीमा विवाद पर कोई रणनीति या क्षेत्र की स्थिरता के लिए कोई चिंता दिखाई नहीं दे रही है।

शांति बनाए रखने की प्रमुख जिम्मेदारी अब सऊदी अरब के कन्धों पर है। इस क्षेत्र में वही ऐसी ताकत है जो दुनिया के स्तर पर अपनी बात मनवाने में सक्षम है। अमेरिकी आदेशों की अनदेखी कर, सऊदी अरब ने स्वतंत्र विदेश नीति अपनाने का फैसला किया है। उसके इस रुख का दुनिया के सभी देशों ने समर्थन किया है। फिलिस्तीनियों के हितों की रक्षा और क्षेत्रीय शांति के लिए सऊदी अरब को सक्रीय पहल की जरूरत है, जो अब तक दिखाई नहीं दी है। इस वक्त पश्चिमी एशिया के शासकों और आम लोगों को क्षेत्र की स्थिरता के लिए साथ आने की जरूरत है। ऐसा नहीं हुआ तो, यह क्षेत्र युद्ध के बहाव में बह जायेगा और कोई इसे बचा नहीं पायेगा।

लेखक तलमीज अहमद एक पूर्व राजनयिक हैं। व्यक्त किये गये विचार व्यक्तिगत हैं।

Source : The Hindu

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