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The impact of climate change will increase the risk of infectious and non-infectious diseases, read the hindu editorial of November 22. | क्लाइमेट चेंज भारत में गंभीर बीमारियों को बढ़ा देगा, पढ़िए 22 नवंबर का एडिटोरियल

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एक घंटा पहले

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भारत क्लाइमेट चेंज पर होने वाले यूनाइटेड नेशन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (COP28) के 28 वें सम्मेलन के लिए तैयार हो चुका है।

ये समझने की जरूरत है कि क्लाइमेट कैसे हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। भारत का हेल्थ सिस्टम और उसकी स्वास्थ्य प्रणालियां, हमारे देश की आबादी के लिए खासकर क्लाइमेट चेंज के प्रभावों को कारण स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को ज्यादा गंभीर बनाती हैं।

क्लाइमेट चेंज हमारे स्वास्थ्य को सीधा प्रभावित करता है, जिसकी वजह से गंभीर बीमारीयां और उनके चलते मौत तक हो जाती है। बहुत सारे अप्रत्यक्ष कारणों की वजह से ये हमारे पोषण को प्रभावित करता है, और हमारे काम के घंटे को कम करता है, इससे क्लाइमेट से जुड़ा तनाव भी बढ़ता है।

क्लाइमेट से जुड़ी आपात स्थितियां, ज्यादा गर्मी, साइक्लोन, बढ़ती अनियमितता के साथ घटने वाली घटनाओं की संभावना है। ये फूड सिक्योरिटी और रोजगार में बाधा डालेंगे और स्वास्थ्य संबंधी चुनौती को बढ़ाएंगे।

क्लाइमेट चेंज का दोहरा बोझ

क्लाइमेट चेंज की वजह से भारत में संक्रमण और गैर-संक्रमणकारी बीमारियों का बोझ दोगुना हो जाएगा। ये मच्छरों, रेत मक्खियों, किलनी और अभी तक कई नहीं जाने, जाने वाले वैक्टरों के विकास को सुविधाजनक बना सकता है, और उनके जीवन चक्र में बदलाव के माध्यम से संक्रमण की मौसमी प्रकृति को बदल सकता है।

यह उन क्षेत्रों में वैक्टर और रोगों की शुरुआत को भी सुविधाजनक बना सकता है, जहां वे पहले मौजूद नहीं थे, जैसे हिमालयन राज्यों में मच्छर का होना।

महामारी आमतौर पर बाढ़ के बाद होती है। हालांकि, लंबे समय तक गर्मी होने से बीमारियों को बढ़ने का मौका मिलता है।गर्मी बीमारियों को बढ़ाने में भी मदद करती है। खाना और पानी की कमी और भोजन में पोषण की कमी बीमारियों को बढ़ा देती है।

गैर-संक्रामक बीमारियों और मानसिक स्वास्थ्य क्लाइमेट चेंज के प्रभाव को बहुत कम पहचाना जाता है, इन दोनों का भारत में मैनेजमेंट ठीक नहीं है। मजदूरों के लिए गर्मी, शारीरिक मेहनत और पानी की कमी लगातार बनी रहती है।

ये समस्याएं किडनी की बीमारी को भी बढ़ा सकती हैं, जो भारत में डायबिटीज के बढ़ते मरीजों की वजह से बढ़ रही है। वायु प्रदूषण की वजह से क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी बीमारियां और बढ़ जाती हैं।

गर्मी की लहर के दौरान प्लमनरी रोग से मरने का जोखिम 1.8 से बढ़कर 8.2% हो जाता है, और यदि 29 डिग्री सेल्सियस के टेम्परेचर में यदि 1% वृद्धि भी हो जाती है, तो इसके बाद अस्पताल में भर्ती होने वाले बीमारों की दर 8% बढ़ जाएगी।

मौसम की स्थिति में बदलाव या कहें क्लाइमेट इमरजेंसी की वजह से बढ़ने वाला डिप्रेशन बढ़ रहा है। भारत में इन मुद्दों पर कम ही बात की जाती है।

भारत में बिना किसी कंट्रोल के शहरीकरण किया जा रहा है। शहरी क्षेत्र, शहर की हरियाली और खुली जगह से प्रभावित नहीं होते, बल्कि डामर सड़कों और गर्मी बढ़ाने वाली इमारतों से भरे हुए हैं, जो हवा के सर्कुलेशन को रोकते हैं, और शहरी हीट में क्लाइमेट चेंज के सबसे खराब (शहरी क्षेत्र, ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में ज्यादा गर्म होते हैं, खासकर रात के समय) प्रभावों से जूझते हैं।

क्लाइमेट चेंज स्वास्थ्य पर किस तरह प्रभाव डालता है, इसके प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कारणों को समझने से ही इस सबको बेहतर करने की कोशिश की जा सकती है, जिससे इसके बोझ को कम किया जा सके।

हेल्थ इनफॉर्मेशन सिस्टम को सुधारने के लिए, डेटा सिस्टम को सुधाराना जरूरी है लेकिन इस पर नहीं गया है। हालांकि, ये क्लाइमेट इफेक्ट सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में बढ़ जाता है, इसलिए समाज का सहयोग और स्वास्थ्य के लिए एक सिस्टम बनाने से इसके प्रभाव से बचने में मदद मिलेगी।

लेकिन इस बेहतर शहरी सिस्टम के लिए, हरियाली, जल संरक्षण और पब्लिक हेल्थ के मुद्दों पर ध्यान देने से स्वास्थ्य के कई पेरमीटर पर असर बढ़ेगा।

हर स्तर पर कार्रवाई

क्लाइमेट चेंज को कंट्रोल करने के लिए बदलाव, ग्लोबल, रीजनल और लोकल लेवल्स पर करना जरूरी है। इसे पाने के लिए भारत को क्लाइमेट चेंज और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले इसके प्रभाव को पहचानना होगा, जिसका हल निकाला जा सकता है।

क्लाइमेट पर काम कर रहे रिसर्चर्स को इसके प्रभाव को कम करने के लिए एक साथ आकर काम करने और और पॉलिसी बनाना जरूरी है।

राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय सरकारों को रिसर्च द्वारा बेहतर पॉलिसी विकल्पों पर काम करने का फैसला करना चाहिए। जब क्लाइमेट पर बेहतर समाधान, पॉलिसी और राजनीतिक फैसले लेने लिए ये तीनों एक साथ आते हैं, तभी सही बदलाव की उम्मीद करने से पहले ये समझना जरूरी होगा कि ये जरूरी शर्तें पूरी की गईं हैं या नहीं?

चूंकि क्लाइमेट चेंज लगातार जारी है।

लेखक: प्रणय लाल, हेल्थ सिस्टम ट्रांसफॉर्मेशन में सीनियर एडवाइसर हैं।

Source: The Hindu

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