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‘गाजा अब दो हिस्सों में बंट चुका है। उत्तरी गाजा और दक्षिणी गाजा। उत्तरी गाजा में हम हमास का सफाया कर रहे हैं और दक्षिण में घायलों की मदद। अगर हमें लगता है कि वहां भी कोई हमास लड़ाका है तो उसे भी मार गिराया जा रहा है।’
4 नवंबर को इजराइली सेना के प्रवक्ता डेनियल हागरी ने ये बात कही है। इससे साफ हो गया है कि जंग के 30 दिन पूरे होते-होते इजराइली सेना ने गाजा के दो टुकड़े कर दिए हैं। इतना ही नहीं, महीने भर की इस जंग ने फिलिस्तीन के नक्शे के अलावा हमास की ताकत और मुस्लिम देशों की सियासत को बदलकर रख दिया है।
इस स्टोरी में जानेंगे कि हमास-इजराइल जंग में 30 दिनों में कितना कुछ बदल गया-
1917 में शुरू हुई फिलिस्तीनी नक्शा बदलने की दास्तां
पहला विश्व युद्ध खत्म होने में एक साल बचा था। ब्रिटिश एम्पायर की सेना मिडिल ईस्ट की सत्ता में काबिज ओटोमन एम्पायर को तेजी से खदेड़ रही थी। ब्रिटेन को भरोसा हो गया था कि वो फिलिस्तीन पर कब्जा करने में कामयाब होगा।
तभी नवंबर 1917 में ब्रिटेन के फॉरेन सेक्रेटरी आर्थर बाल्फर ने यूरोप के बड़े यहूदी लीडर को एक खत लिखा। इसमें एक वादा किया गया था- हम फिलिस्तीन में यहूदियों के लिए एक देश बसाएंगे। हालांकि यूरोप में हो रहे अत्याचारों से तंग आकर यहूदियों ने 1880 के दशक में ही फिलिस्तीन में बसना शुरू कर दिया था।
1917 में फिलिस्तीन में उनकी आबादी 6% हो गई थी। फिलिस्तीन के अरब मुस्लिमों ने बाल्फर के वादे का विरोध किया, पर इससे कुछ नहीं बदला। अल जजीरा के मुताबिक 1917 में किए गए बाल्फर के वादे को फिलिस्तीन का नक्शा बदलने की तरफ बढ़ाया गया पहला कदम माना जाता है।

1948 में इजराइल बना तो फिर बदला नक्शा
1922 से 1935 के बीच फिलिस्तीन में यहूदियों की आबादी 7% से बढ़कर 22 % हो गई। 1936 में फिलिस्तीन में यहूदियों के खिलाफ बड़ा आंदोलन शुरू हुआ। ब्रिटेन ने इसे बेरहमी से कुचला। 2 हजार फिलिस्तीनियों के घर तबाह कर दिए, 9 हजार लोगों को पकड़ कर यातना शिविरों में डाल दिया। अंग्रेजों के खिलाफ शुरू हुआ विद्रोह 1939 तक चला।
इसी वक्त यूरोप में एक बार फिर जंग छिड़ गई। यूरोप में हिटलर के अत्याचारों से बचने के लिए रिकॉर्ड संख्या में यहूदी फिलिस्तीन पहुंचने लगे। 1944 में हथियारबंद यहूदी लड़ाकों ने इजराइल बनाने के लिए फिलिस्तीन की अंग्रेज सरकार के खिलाफ जंग छेड़ दी। नतीजा ये रहा कि 1947 आते-आते ब्रिटेन ने फिलिस्तीन-इजराइल का मामला संयुक्त राष्ट्र संघ को सौंप दिया।
UN ने फिलिस्तीन को 2 टुकड़ों में बांटने का सुझाव दिया। एक यहूदियों और एक अरब मुस्लिमों के लिए। 1948 में डेविड बेनगुरिअन नाम के एक यहूदी नेता ने फिलिस्तीन में इजराइल बनने की घोषणा कर दी। ये दूसरी घटना थी जब फिलिस्तीन के नक्शे में बड़ा बदलाव दर्ज किया गया।

1967 की जंग में पूरे फिलिस्तीन पर इजराइल का कब्जा
1967 में इजराइल पर मिस्र, जॉर्डन और सीरिया हमला कर देते हैं। अरब देश और इजराइल 6 दिनों तक जंग लड़ते हैं। इसे सिक्स डे वॉर भी कहा जाता है। जंग में अरब देशों को बड़ी हार का सामना करना पड़ता है।
अरब देश वेस्ट बैंक, गाजा पट्टी, यरुशलम और गोलान हाइट्स जैसे अहम फिलिस्तीनी इलाके हार जाते हैं। इजराइल गाजा छोड़कर सभी जगहों पर अपने लोगों को बसाना शुरू कर देता है। ये वो घटना थी जब पूरे फिलिस्तीन पर इजराइल का कब्जा हो गया था। 3 लाख फिलिस्तीनियों को घर छोड़ना पड़ा था।

1993 में हुए ओस्लो समझौते ने फिर बदला फिलिस्तीन
अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की अगुआई में 6 महीनों तक चली सीक्रेट बातचीत के बाद इजराइल और फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन (PLO) के बीच समझौते कराए जाते हैं। इसे ऑस्लो एग्रीमेंट कहा जाता है। इसके तहत वेस्ट बैंक का शासन इजराइल फिर से PLO को दे देता है, लेकिन कुछ शर्तों के साथ ।

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30 दिन की जंग में हमास कमजोर हुआ या उसकी ताकत बढ़ी, 3 पॉइंट्स में जानें…
1) लंबी जंग के लिए कितना तैयार है ?
7 अक्टूबर को जब हमास ने हमला किया तो उसकी प्लानिंग ने सबको हैरान कर दिया। कतर यूनिवर्सिटी के एक्सपर्ट अदीब जियादेह का कहना है कि हमास इतनी आसानी से इजराइल के सामने घुटने नहीं टेकेगा। 7 अक्टूबर को किए गए हमले की प्लानिंग से पता चलता है कि हमास लॉन्ग टर्म के लिए जंग लड़ने की तैयारी करके बैठा है।
जंग शुरू होने से पहले हमास के पास 40 हजार लड़ाके बताए जा रहे थे। इजराइल की बमबारी में 9 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। इजराइल के पास अभी इस सवाल का जवाब नहीं है कि इनमें से कितने हमास के लड़ाके हैं और कितने आम लोग।
इजराइली सेना के मुताबिक वो हमास के 50 से ज्यादा टॉप कमांडरों को खत्म कर चुकी है।
जंग से पहले हमास के पास 15 हजार रॉकेट्स का जखीरा था। इसमें 8100 से ज्यादा रॉकेट्स इजराइल पर दागे जा चुके हैं। अब भी 7 हजार रॉकेट्स बचे हैं। 2008 की जंग के वक्त हमास के रॉकेटों की अधिकतम सीमा 40 किमी (25 मील) थी, लेकिन 2021 तक यह बढ़कर 230 किमी हो चुकी है।
गाजा में 80 फीट की गहराई में बनी सुरंगें भी हमास के लिए किसी हथियार से कम नहीं हैं। हमास का प्लान था कि वो इजराइली सैनिकों को सुरंगों के जरिए घेर कर मारेंगे, ताकि इजराइल परेशान होकर जल्द सीजफायर का ऐलान कर दे। हालांकि इजराइल ने दावा किया है कि वो 100 ऐसी सुरंगों को तबाह कर चुका है।

2) गाजा की बाड़ाबंदी
गाजा को हथियारों की सप्लाई ईरान और लीबिया से होती है। ईरान से गाजा तक हथियार पहुंचाने के लिए पहले उन्हें यमन तक लाया जाता है। फिर वहां से हथियारों को मिस्र के पास स्वेज नहर तक पहुंचाया जाता है। यहां से ये सिनाई होते हुए गाजा पट्टी तक पहुंचते हैं।
वहीं एक रास्ता सूडान से भी निकलता है। पहले हथियारों को सूडान पहुंचाया जाता है, वहां से रेगिस्तान के रास्ते से मिस्र की स्वेज नहर तक और फिर गाजा पट्टी। जंग की वजह से इजराइल की सभी रास्तों पर निगरानी है। ऐसे में गाजा तक नए हथियार पहुंचना लगभग नामुमकिन है। ऐसे में उम्मीद है कि हमास ज्यादा दिनों तक इजराइल का सामना नहीं कर पाएगा।
3) हमास के पैसों पर इजराइल की निगहबानी
गाजा में बेरोजगारी दर 47% और गरीबी बेशक 80% हो, लेकिन हमास की सेना के पास बजट की कमी नहीं है। हमास अपनी फौज पर सालाना 100 से 350 मिलियन डॉलर खर्च करता है। यही एक वजह है कि हमास की फंडिंग पर भी इजराइल और अमेरिका निगाहें गड़ाए बैठे हैं। गाजा में हमास को अनगिनत सोर्सेज से फंड मिलता है। हर साल करीब 40 करोड़ डॉलर वो टैक्स, एक्सटॉर्शन और कस्टम फीस से कमाता है। इससे तीन गुना ज्यादा उसे ईरान और दूसरे देशों में फैले नेटवर्क से मिलता है।
इजराइल की मदद के लिए अमेरिका ने ठान लिया है कि वो फाइनेंशियल नेटवर्क को खत्म करेगा। इसके लिए इंटरनेशनल फाइनेंशियल सिस्टम और दूसरे रेवेन्यू सिस्टम की बारीकी से जांच चल रही है। इजराइल-हमास जंग शुरू होने के बाद कई कदम उठाए गए हैं।
हमास के मेंबर्स और नेताओं के एसेट्स जब्त किए गए हैं। इन्होंने पैसा रियल एस्टेट और कुछ सेक्टर्स में इन्वेस्ट किया है। माना जाता है कि यह इन्वेस्टमेंट 50 करोड़ डॉलर से ज्यादा है। इसके अलावा सूडान, अल्जीरिया, तुर्किये और UAE में हमास नेताओं की कंपनियां भी हैं। इनके खिलाफ भी एक्शन लिया गया है।

जेएनयू के प्रोफेसर और विदेश मामलों के जानकार राजन कुमार से हमास-इजराइल जंग पूरे होने पर तीन जरूरी सवालों के जवाब जानते हैं…
सवाल 1: एक महीने में हमास के खिलाफ जंग से इजराइल को क्या मिला?
जवाब: 7 अक्टूबर को हुए हमले के बाद हमास के खिलाफ जंग में इजराइल के दो मकसद थे-
1. हमास के पास से 250 से ज्यादा इजराइली बंधकों को आजाद कराना।
2. आतंकी संगठन हमास को जड़ से खत्म करना।
एक महीने से जारी जंग में इजराइल इन दोनों ही मकसद में पूरी तरह से फेल रहा है। न तो बंधक आजाद हुए हैं और न ही हमास के टॉप नेता मारे गए हैं। जंग से गाजा में काफी ज्यादा सिविलियन मारे जाने की वजह से अमेरिका समेत दुनियाभर में सीजफायर की मांग हो रही है।
अमेरिका भले ही खुलकर इजराइल के हमले का विरोध नहीं कर रहा हो, पर हकीकत यह है कि वह भी सीजफायर चाहता है। ऐसे में अब तक इजराइल को सिवाय हमास के कुछ कमांडरों के मारे जाने, बंकर तबाह करने से और ज्यादा कुछ हासिल नहीं हुआ है।
सवाल 2: हमास को इस हमले से क्या हासिल हुआ है?
जवाब: हमास ने इजराइल पर जिस तरह से हमला किया उसकी इमेज आतंकी संगठन वाली बनी है। अब तक कई देश उसे आतंकी संगठन नहीं मानते थे, लेकिन इस घटना के बाद उन देशों पर भी ऐसा मानने का दबाव बढ़ेगा।
फिलिस्तीन को लेकर अब तक जो हमास एक मूवमेंट चला रहा था, इस घटना के बाद उस पूरे मूवमेंट की इमेज खराब हुई है। ऐसा करके इजराइल को हमास ने गाजा पर हमला करने के लिए आमंत्रित किया। इस वजह से वहां 10 हजार से ज्यादा लोग मारे गए हैं।
सवाल 3: अरब और दुनिया की राजनीति पर इजराइल-हमास जंग का क्या असर हुआ?
जवाब: इस हमले के पीछे ईरान का अप्रत्यक्ष रोल है। वह नहीं चाहता था कि अब्राहम एकॉर्ड सफल हो। दरअसल, पिछले 26 सालों में इजराइल और अरब देशों के बीच होने वाला ये पहला शांति समझौता है। इसमें UAE, मोरक्को, सूडान, जॉर्डन समेत कई अरब देशों ने इजराइल के साथ बेहतर संबंध बनाने शुरू किए थे।
ईरान खुद को इन देशों का नेता बनाना चाहता था। इसी वजह से ईरान ने उकसाकर इस हमले की जमीन तैयार की। ईरान दुनिया और अरब में अपना इन्फ्लुएंस बढ़ाना चाह रहा है।
ऐसे में वह अमेरिकी प्रयास से सऊदी अरब और इजराइल के बीच होने वाले समझौते को भी सफल नहीं होने देना चाह रहा था। उसे लगता था कि ऐसा हुआ तो फिलिस्तीन समेत आसपास के देशों पर सुन्नी देश सऊदी का प्रभाव बढ़ेगा। वह अपने पड़ोस में इस बात को किसी भी तरह से बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था।
ये बात सही है कि रूस-यूक्रेन जंग के बाद वैश्विक राजनीति में बदलाव आए। चीन के प्रयासों से सऊदी अरब और ईरान के बीच समझौता हुआ। बावजूद इसके हर देश अपना हित देखकर किसी मुद्दे पर फैसला लेता है। हमास-इजराइल जंग में ईरान ने अपने हित के लिए सऊदी से इतर रास्ता अपनाया और ऐसा माना जाता है कि उसने जंग के लिए हमास को उकसाया ।
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