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India’s more aggressive diplomacy regarding Maldives can be dangerous, read the hindu editorial of January 17 | The Hindu हिंदी में: भारत की मालदीव को लेकर ज्यादा आक्रामक कूटनीति खतरनाक हो सकती है, पढ़िए 17 जनवरी का एडिटोरियल

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5 घंटे पहले

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे के बाद, लक्षद्वीप में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कुछ सोशल मीडिया यूजर्स ने मालदीव को बॉयकॉट करने का हैशटैग चलाया। इसकी प्रतिक्रिया में मालदीव के अफसरों और कुछ नेताओं ने खराब भाषा का इस्तेमाल करके सोशल मीडिया पर विवाद को और बढ़ावा दे दिया।

इसी के चलते, मालदीव ने उप नेता मलशा शरीफ, मरियम शिउना और महजूम माजिद को मोदी और भारत पर खराब टिप्पणी करने के लिए निलंबित कर दिया।

उन्होंने कहा कि इनकी टिप्पणी मालदीव की आधिकारिक दृष्टि को नहीं दर्शाती है।

हालांकि, मोहम्मद मुइज्जू की चीन यात्रा से पहले दिए बयान, सोच समझ कर दिए गए हों। पिछले राष्ट्रपति की तुलना में मुइज्जू चीन के बेहद करीबी माने जाते हैं। उनके चुनाव अभियान में भारत विरोध आसानी से देखा जा सकता है।

इसके साथ ही, उन्होंने मालदीव से भारतीय सेना को हटाने और व्यापार को संतुलित करने का वादा किया था। उनका कहना था कि, भारत से व्यापार करने में भारत का अधिक लाभ हो रहा था।

चीन के फुजियान क्षेत्र के दौरे के समय उन्होंने कहा कि COVID-19 से पहले चीन मालदीव का सबसे बड़ा बाजार था और उसे यह पद दोबारा हासिल करने की कोशिश करना चाहिए।

चीन और मालदीव ने अपने द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ा कर ’व्यापक रणनीतिक सहयोग साझेदारी’ कर लिया है।

इसके अलावा, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा है कि चीन मालदीव की राष्ट्रीय स्थिति के हिसाब से विकास के रास्ते खोजने की कोशिशों का सम्मान और समर्थन करता है।

चीन की कूटनीति के हिसाब से इसका मतलब है कि भारत के प्रभाव से खुद को आजाद करना। चीन दूसरी जगहों पर ऐसी ही कोशिश और इसी भाषा का इस्तेमाल करता आया है।

जैसा कि ‘राष्ट्रीय स्थिति’ की आड़ में वह मौजूदा मानकों को गलत ठहराता है। इस बात की पूरी संभावना है कि नए समझौते मालदीव और उसके समुद्री क्षेत्र में चीन की मौजूदगी बढ़ाएंगे।

इससे चीन की डिजिटल और भौतिक (physical) निगरानी क्षमता में बढ़ोतरी होगी।

इस दौरे ने राष्ट्रपति मुइज्जू के मनोबल को बढ़ाया है और उन्होंने भारत को वहां स्थित सेना के जवानों को हटाने के लिए कहा है।

वहां की सेना को ट्रेनिंग देने और उपकरणों के रखरखाव के लिए मौजूद इन लोगों के पास हटने के लिए 15 मार्च तक का समय दिया गया है।

उन्होंने यह भी कहा कि छोटा देश होने के कारण किसी अन्य देश को उस पर अपनी धौंस जमाने का अधिकार नहीं मिल जाता है।

भारत की इच्छा

मालदीव के साथ भारत के संबंध पुराने और व्यापक हैं। जहां मालदीव को भारत की जरूरत है वहीं भारत को भी मालदीव की जरूरत है।

मालदीव भारतीय महासागर में भारत का प्रमुख समुद्री पड़ोसी है। उसने ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन में लगातार भारत का पक्ष लिया है।

भारत नई विश्व व्यवस्था में नियम तय करने वाले की भूमिका निभाना चाहता है। हालांकि, दावों और हकीकत के बीच भारी अंतर है।

कूटनीति के नजरिए से पिछले कुछ साल भारत के लिए चुनौतीपूर्ण रहे हैं।

यूक्रेन पर रूस के हमले में भारतीय रुख ने भारत के लिए नए मित्र नहीं बनाए हैं। इसी तरह, इजराइल–हमास युद्ध में कोई साफ रुख न रखना भी इसकी प्रसिद्धि के लिए अच्छा नहीं माना जा रहा है।

असल में, इतिहास दिखाता है कि दुनिया के नियम तय करने और लोकप्रिय होने की इच्छा के बीच प्रतियोगिता रहती है और दोनों को एक साथ हासिल नहीं किया जा सकता है।

इसी के चलते, भारत को कुछ कठोर निर्णय करने में देरी नहीं करनी चाहिए। इसी तरह देश के भीतर लोकप्रिय बयानबाजी से विदेशी संबंधों को सुधारा नहीं जा सकता है।

खास तौर पर तब, जब पड़ोस के छोटे देश भारत और चीन के बीच ज्यादातर मामलों में चीन को प्राथमिकता देते दिख रहे हैं।

एक उभरती हुई महाशक्ति को अपने राष्ट्रीय हितों और विशेष रूप से अपने पड़ोसियों के हितों के बीच सामंजस्य दिखाने की क्षमता होनी चाहिए।

2014 में, सत्ता हासिल करने के बाद मोदी ने नेबरहुड फर्स्ट नीति पर जोर दिया था। इस नीति के मिले-जुले नतीजे ही हासिल हो सके।

पिछले साल G20 बैठक का आयोजन करते समय भारत ने वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर के विचार को सामने रखा जिस पर मोदी ने अपने मुख्य भाषण में विस्तार से चर्चा की।

भारत ने, देश में और विदेशों में सही संदेश दिया लेकिन जब अपने छोटे पड़ोसियों के साथ व्यवहार की बात आती है, तो भारत और भारतीय सोशल मीडिया एक वैश्विक ताकत की जगह उग्र योद्धा की तरह व्यवहार करने लगते हैं।

COVID-19 को एक वैश्विक महामारी बनने से रोकने में विफल रहने के लिए जब चीन की दुनिया भर में आलोचना हुई, तो चीन ने इसका मुकाबला करने के लिए संवेदनशील भाषा का उपयोग किया जिसे बाद में डिप्लोमेसी का नाम दिया गया।

भले ही, यह चीन के अंदर लोकप्रिय रहा हो लेकिन दुनिया ने इसे चीन द्वारा गलती मानने के रूप में लिया।

हालांकि, चीन के लिए यह उसके विचार को दर्शाने का एक तरीका था, जिसमें उसका मानना है कि दुनिया उसे अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में उचित जगह नहीं दे रही है।

वुल्फ वॉरियर डिप्लोमेसी के जरिए चीन ने यह बताने की कोशिश की कि उसकी राजनीतिक व्यवस्था पश्चिम की राजनीतिक व्यवस्था से बेहतर तरीके से महामारी का सामना कर रही है।

चीन के वॉरियर डिप्लोमेट चीनी हितों पर विदेशी हमले के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार रहते थे।

इस प्रकार, वे अन्य प्रणालियों/तंत्रों की तुलना में अधिक सफल होने और जनता की भलाई करने को बेहतर बताने की बयानबाजी का सहारा लेते हैं। इस संबंध में मालदीव को लेकर भारत के सोशल मीडिया योद्धाओं का रुख भी इससे बहुत अलग नहीं था।

हाल की घटनाओं से पता चलता है कि घरेलू भावनाएं भारत की विदेश नीति की चुनौती को बढ़ा देंगी। और भले ही चुनावी साल में यह फायदेमंद हो सकता है। यह पहले से ही कई समस्याओं से जूझ रहे पड़ोस की वजह से भारत की समस्याओं को और बढ़ा देता है।

मालदीव के साथ कूटनीतिक विवाद दिखाता है कि भारत चीन को हराने की इच्छा नहीं रखता लेकिन साथ ही ठीक उसी तरह व्यवहार नहीं कर सकता जैसा चीन करता है।

लेखक: अविनाश गोडबोले, जिंदल स्कूल ऑफ लिबरल आर्ट्स में एसोसिएट प्रोफेसर और एसोसिएट अकादमिक डीन हैं।

Source: The Hindu

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