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India wants to become a 5 trillion economy but for whom? Read the hindu editorial of 24 November | भारत 5 ट्रिलियन इकोनॉमी बनना चाहता है लेकिन किसके लिए? पढ़िए 24 नवंबर का एडिटोरियल

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एक घंटा पहले

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पिछले हफ्ते छत्तीसगढ़ में एक चुनावी रैली के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि वो ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना’ को पांच साल तक बढ़ा रहे हैं, क्योंकि वो नहीं चाहते कोई भी नागरिक भूखा सोये।

इस खाद्य सुरक्षा अधिनियम का लाभ लेने वाले लाभार्थियों को 5 किलोग्राम भोजन हर माह मुफ्त दिया जाता है। इसका मतलब ये है कि 80 करोड़ भारतीयों को 2028 तक इस योजना का लाभ मिलता रहेगा और वे भुखमरी से बचे रहेंगे।

इस वर्ष सरकार उम्मीद कर रही है कि भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की GDP के साथ दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी। हालांकि, क्या 5 ट्रिलियन GDP की के साथ भी भारतीय भूखे रहेंगे? और इस लक्ष्य को पाने में पांच साल की देरी से किसे फायदा होगा?

जापान के विकास की कहानी

बूढ़े लोग वहां, किराये पर लोगों को बुलाते हैं, जो हर रविवार को उनके घर आते हैं, और उन्हें ‘मॉम’ और ‘पॉप’ कहते हैं, क्योंकि अब उनके खुद के बच्चे उनसे मिलने नहीं आते। जाहिर है, अर्थव्यवस्था के लिहाज से जापान तीसरे स्थान पर होने के बावजूद भी सभी तरह से ऊपर नहीं उठ पाया है।

40 साल तक, जापान मैन्युफैक्चरिंग और निर्यात की दुनिया से चलने वाली दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी। हालांकि, 2008 के विश्व वित्तीय संकट के बाद, जापानी अर्थव्यवस्था के पहिए बंद हो गए। जापान की आबादी कम खर्च करने लगी, निर्यात कम हो गया और सरकारी योजनाएं खत्म हो गईं।

दूसरी ओर चीन मैन्युफैक्चरिंग में तेजी से आगे बढ़ा और GDP के हिसाब से जापान को पछाड़कर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया। हालांकि, रैंक खोने के बाद जापान ने इगो-फ्री आर्थिक कूटनीति का परिचय दिया। जैसे ही अर्थव्यवस्था तीसरे स्थान पर आ गई, जापान की लीडरशिप ने सार्वजनिक रूप से चीन का स्वागत किया।

ये कहते हुए कि (हाल ही में) सबसे ज्यादा आबादी वाले देश से लगातार जापान के निर्यात से अच्छी हो सकती है।

भले ही ये बयान थोड़ी ही सही अपनी इज्जत बचाने के लिए दिया गया हो, लेकिन दोनों ही अर्थव्यवस्थाएं आपस में जुड़ गईं। आज के समय में चीन, जापान का सबसे बड़ा व्यापारिक पार्टनर है, जो ये बताता है कि विश्व राजनीतिक अर्थव्यवस्था (वर्ल्ड पॉलिटिकल इकोनॉमी) में अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी (कॉमपिटिर ) को गले लगाने का फायदा मिलता है।

भले ही आप विश्वगुरु हों। इस इगो-फ्री ‘सक्रियता[ से ये पक्का होता है कि जापान पिछले 14 सालों से वर्ल्ड GDP रैंकिंग में तीसरे स्थान पर बना हुआ है।

लेकिन आइए हम जापान की कहानी पर वापस लौटते हैं, जैसे-जैसे उच्च मूल्य वाली इंडस्ट्रियल अर्थव्यवस्था केंद्र में आई, व्यक्तिगत और व्यावसायिक रिश्तों की ताकत कम हो गई और पीढ़ियों से चली आ रही, पारिवारिक और सामाजिक व्यवस्था एक परमाणु की तरह बन गई।

ये पारंपरिक और कम स्किल वाले लोगों के लिए एक तूफान की तरह था। श्रमिक नौकरियों की तलाश में गांव से शहरों की तरफ चले गए, लेकिन उन्होंने वहां जाकर समझा कि वे उच्च तकनीक के लिए स्किल्ड नहीं हैं। इस तरह वे आर्थिक रूप से पतन और अलगाव के बीच फंस गए।

एक गहरा विभाजन

भारत की आर्थिक वृद्धि पूंजी, उत्पादकता और श्रम पर आधारित है, और डेटा से पता चलता है कि चार-पांचवें से अधिक भारतीयों के लिए, 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बहुत दूर और डेटा बताते हैं कि 4/5 भारतीय लोगों के लिए ये बहुत दूर है।

यदि हम पूंजी पर विचार करें तो, ऑक्सफैम के अनुसार 2021 में, 1% आबादी के पास देश की लगभग 41% संपत्ति थी, जबकि 50% के पास 3 % संपत्ति थी। ऐसे माहौल में, 5 ट्रिलियन डॉलर की आर्थिक ट्रॉफी की दौड़ अमीरों और सत्ता संपन्न दलालों की पकड़ में है, जो इस पहल को खत्म कर देंगे।

हालांकि, मुश्किल कम संसाधन वाले लोगों की है, जो 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लिए निवेश लिए काम कर रहे हैं। GST की लगभग 64% आबादी के निचले 50% और टॉप 10% से आया है। GST का 3% योगदान दिया।

साथ ही इसके विकास के अन्य कारण, श्रम का योगदान, अधूरी शैक्षिक स्किल और डिजिटल लिटरेसी में रुकावट की वजह से समस्या आती है। डिजिटल और बेसिक स्ट्रक्चर से उत्पादकता को बढ़ावा मिलना शुरू हो गया।

सरकार को पता है कि भारत के अमीर लोग 2029 के आम चुनाव से पहले 5 ट्रिलियन डॉलर का लक्ष्य हासिल करने लिए टॉप पर आ रहे हैं। जाहिर है इससे विदेशों में भारत का प्रभाव बढ़ेगा और दुनिया में प्रधानमंत्री की प्रधानता भी बढ़ जाएगी।

मोदी की इस गारंटी के साथ कई अन्य तरह के मुद्दे भी जुड़े हैं कि भारत आने वाले पांच सालों में, दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगी। सबसे पहले $2,400 की प्रति व्यक्ति आय के साथ, भारत 2022 में 194 देशों में 149 वें स्थान पर है। हालांकि, प्रति व्यक्ति आय किसी भी देश की जनसंख्या की बेहतरी का एक मैप होता है।

चीन ने $13,000 डॉलर प्रति व्यक्ति आय के साथ जापान को पीछे छोड़ दिया है, लेकिन भारत को प्रतिव्यक्ति आय 5 ट्रिलियन डॉलर होने का अनुमान है? इसका कोई आधिकारिक अनुमान नहीं है।

दूसरा, 5 ट्रिलियन डॉलर की GDP का लक्ष्य इसके वितरण या असमानता (Inequality Index) सूचकांक है। वर्ल्ड इकोनॉमिक्स द्वारा तैयार किए गए सूचकांक 0-100 के पैमाने पर है। उच्च मूल्य एक ज्यादा समतावादी समाज को बताता है। चीन और जापान दोनों की वैल्यू 50 से ज्यादा है।

ये देश भारत की तुलना में अपने आर्थिक भाग्य को ज्यादा समान रूप से साझा करते हैं, भारत की वैल्यू 21.9 है।

क्या 5 ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य से दोनों तरह के भारत के बीच अंतर बढ़ जाएगा। भारत भले ही इस लक्ष्य को हासिल करने की राह पर है, लेकिन भारत की ज्यादातर आबादी अभी भी भारत की धीमी गलियों में भटकी हुई है और पुराना भारत नए तरह के भारत को जाते देख रहा है।

जबकि, भारत 2028 में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए तैयार है, वहीं 80 करोड़ भारतीयों को अभी भी भूख से बचने के लिए मुफ्त खाद्यान्न मिलेगा।

लेखिका: नलिनी सिंह, टीवी लाइव प्राइवेट इंडिया में जर्नलिस्ट और मैनेजिंग एडिटर हैं।

Source: The Hindu

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