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India China Controversy; S Jaishankar On Jawaharlal Nehru Policies | जयशंकर बोले- नेहरू ने चीन को भारत से आगे रखा: हमें UNSC की परमानेंट सीट ऑफर हुई थी, लेकिन नेहरू ने कहा- पहले चीन सदस्य बने

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2 घंटे पहले

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विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बुधवार को अहमदाबाद में गुजरात चेंबर फॉर कॉमर्स एंड इंडस्ट्री को संबोधित किया। - Dainik Bhaskar

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बुधवार को अहमदाबाद में गुजरात चेंबर फॉर कॉमर्स एंड इंडस्ट्री को संबोधित किया।

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बुधवार को चीन के मुद्दे पर एक बार फिर से पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की नीतियों पर सवाल उठाए हैं। जयशंकर ने कहा, “जब हमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में परमानेंट सीट देने की बात उठी तब नेहरू ने भारत को पीछे रखते हुए चीन को प्राथमिकता दी।”

अहमदाबाद में एक कार्यक्रम के दौरान जयशंकर ने बताया, “उस वक्त नेहरू ने कहा था कि भारत इस सीट के काबिल है लेकिन पहले चीन को UNSC का स्थायी सदस्य बनना चाहिए।” विदेश मंत्री ने आगे कहा, “आज हम इंडिया फर्स्ट की पॉलिसी अपना रहे हैं, लेकिन एक समय था जब भारत के प्रधानमंत्री चाइना फर्स्ट और इंडिया सेकेंड की पॉलिसी रखते थे।”

विदेश मंत्री जयशंकर ने बताया कि सरदार पटेल ने नेहरू के सामने चीन के इरादों को लेकर चिंता जताई थी, लेकिन नेहरू ने इसे खारिज कर दिया था। (फाइल)

विदेश मंत्री जयशंकर ने बताया कि सरदार पटेल ने नेहरू के सामने चीन के इरादों को लेकर चिंता जताई थी, लेकिन नेहरू ने इसे खारिज कर दिया था। (फाइल)

जयशंकर बोले- पटेल ने चीन पर चिंता जताई लेकिन नेहरू ने इसे खारिज कर दिया
जयशंकर ने बताया कि साल 1950 में तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने चीन को लेकर नेहरू को चेतावनी भी दी थी। उन्होंने कहा था कि चीन के इरादे उसकी बातों से मेल नहीं खाते हैं और भारत को सावधान रहना चाहिए। लेकिन नेहरू ने उनकी चिंताओं को खारिज कर दिया था।

जयशंकर के मुताबिक, नेहरू ने कहा था कि कोई भी देश हिमालय की तरफ से भारत पर कभी हमला नहीं कर सकता। यह नामुमकिन है। विदेश मंत्री ने UN में पहली बार PoK का मुद्दा उठाए जाने पर कहा, “सरदार पटेल पाकिस्तान और कश्मीर के मामले में भी UN जाने के खिलाफ थे। लेकिन फिर भी यह मुद्दा UN में उठाया गया। इसके बाद हम पर दबाव डालकर वहां सैन्य अभ्यास करने पर रोक लगा दी गई।”

जयशंकर बोले- हमें ज्यादातर समस्याएं विरासत में मिलीं
जयशंकर ने कहा, “केंद्र सरकार पिछले 10 सालों से जिन समस्याओं का सामना कर रही उनमें से कई हमें विरासत में मिली हैं। इनमें से कुछ समस्याओं को सुलझा लिया गया है, लेकिन कुछ पर अभी और समय लगेगा।”

भारत ने पहली बार 1 जनवरी 1948 को UN के सामने कश्मीर का मुद्दा उठाया था। भारत ने कहा था कि पाकिस्तानी घुसपैठिए जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर रहे हैं। यह कानूनी तौर पर भारत का हिस्सा है और पाकिस्तान से यहां से जाने के लिए कहा जाना चाहिए।

‘नेहरू के लिए कच्चाथीवू की अहमियत नहीं थी’
2 दिन पहले एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कच्चाथीवू को लेकर पूर्व PM नेहरू की नीतियों पर सवाल उठाए थे। जयश्ंकर ने कहा था, “1961 में नेहरू ने लिखा था कि मैं इस छोटे से द्वीप को बिल्कुल भी महत्व नहीं देता और मुझे इस पर अपना दावा छोड़ने में कोई हिचकिचाहट नहीं होगी।”

विदेश मंत्री ने आगे कहा, “नेहरू का रवैया ऐसा था कि जितना जल्दी कच्चाथीवू को श्रीलंका को दे दिया जाए, उतना बेहतर होगा। यही नजरिया इंदिरा गांधी का भी था।ये ऐसा मुद्दा नहीं है, जो आज अचानक उठा है। ये मसला संसद और तमिलनाडु में लगातार उठता रहा है, इस पर बहस हुई है।”

जयशंकर ने कहा था कि कांग्रेस और DMK ऐसा दिखा रही हैं कि उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है और यह अभी-अभी का मसला है। जबकि, उन्होंने ही इसे अंजाम दिया था। जनता को ये जानने का अधिकार है कि 1974 में कच्चाथीवू को कैसे दे दिया गया।

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