



यरूशलम8 मिनट पहले
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इजराइल डिफेंस फोर्सेज (आईडीएफ) के अनुसार बहामास के झंडे तले जा रहा जहाज ब्रिटिश कंपनी के नाम पर रजिस्टर्ड है।
यमन के हूती विद्रोहियों ने रविवार को तुर्किए से भारत आ रहे जहाज को हाईजैक कर लिया। लाल सागर से बंधक बनाए गए 620 फीट के कार्गो शिप का नाम गैलेक्सी लीडर है और इसमें 25 क्रू मेंबर मौजूद हैं।
वारदात से पहले हूती समूह ने इजराइली जहाजों पर हमले की चेतावनी दी थी। हूती विद्रोहियों के एक स्पोकपर्सन ने कहा कि इजराइल की तरफ से चलने वाले सभी जहाजों को निशाना बनाया जाएगा।
हालांकि, इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा है कि यह जहाज उनका नहीं है और इस पर कोई इजराइली और भारतीय नगारिक सवार नहीं है। कतरी मीडिया हाउस अलजजीरा के मुताबिक ये कार्गो शिप ब्रिटेन का है और इसे जापानी कंपनी ऑपरेट करती है।

जहाज में केवल इजराइली बिजनेसमैन की पार्टनरशिप
इजराइल डिफेंस फोर्सेज (आईडीएफ) के अनुसार बहामास के झंडे तले जा रहा जहाज ब्रिटिश कंपनी के नाम पर रजिस्टर्ड है। इजराइली कारोबारी अब्राहम उंगर इसके आंशिक हिस्सेदार हैं। फिलहाल यह एक जापानी कंपनी को लीज पर दिया गया था।
इजराइली विदेश मंत्रालय के अनुसार, जहाज पर यूक्रेन, बुल्गारिया, फिलीपींस और मेक्सिको के नागरिक सवार हैं। वहीं, इजराइली प्रधानमंत्री कार्यालय ने इसे आतंकी घटना बताते हुए इसके पीछे ईरान का हाथ बताया।
वहीं, हूती मिलिट्री के प्रवक्ता याह्या सारी ने कहा है कि वो जहाज पर मौजूद सभी बंधकों को इस्लामिक उसूलों और तौर-तरीके के साथ संभाल रहे हैं। उन्होंने लाल सागर में इजराइली जहाजों को निशाना बनाने की फिर से धमकी दी है।
नेतन्याहू ने जताई चिंता, बोले- शिपिंग लाइन प्रभावित होगी
इजराइली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने इसे ईरान की ओर से अंतरराष्ट्रीय जहाज पर हमला बताया है। उन्होंने कहा कि यह ईरान की ओर से आतंकवाद का एक और कृत्य है। यह फ्री वर्ल्ड के लोगों पर एक बड़ा हमला है। इसके अलावा यह दुनिया की शिपिंग लाइन को भी प्रभावित करता है। इससे इस रूट की सुरक्षा को लेकर चिंता स्वाभाविक है।
हमले से पहले ईरान समर्थित हूती के प्रवक्ता याह्या सारिया ने टेलीग्राम चैनल पर कहा था कि समूह इजराइली कंपनियों के स्वामित्व वाले या संचालित या इजराइली झंडे तले जाने वाले सभी जहाजों को टारगेट करेगा।

2014 से यमन के कई हिस्सों पर हूती विद्रोहियों का कब्जा है।
कौन हैं हूती विद्रोही
साल 2014 में यमन में गृह युद्ध शुरू हुआ। इसकी जड़ शिया-सुन्नी विवाद है। कार्नेजी मिडल ईस्ट सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक दोनों समुदायों में हमेशा से विवाद था जो 2011 में अरब क्रांति की शुरूआत से गृह युद्ध में बदल गया। 2014 में शिया विद्रोहियों ने सुन्नी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
इस सरकार का नेतृत्व राष्ट्रपति अब्दरब्बू मंसूर हादी कर रहे थे। हादी ने अरब क्रांति के बाद लंबे समय से सत्ता पर काबिज पूर्व राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह से फरवरी 2012 में सत्ता छीनी थी। हादी देश में बदलाव के बीच स्थिरता लाने के लिए जूझ रहे थे। उसी समय सेना दो फाड़ हो गई और अलगाववादी हूती दक्षिण में लामबंद हो गए।
अरब देशों में दबदबा बनाने की होड़ में ईरान और सउदी भी इस गृह युद्ध में कूद पड़े। एक तरफ हूती विद्रोहियों को शिया बहुल देश ईरान का समर्थन मिला। तो सरकार को सुन्नी बहुल देश सउदी अरब का।
देखते ही देखते हूती के नाम से मशहूर विद्रोहियों ने देश के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया। 2015 में हालात ये हो गए थे कि विद्रोहियों ने पूरी सरकार को निर्वासन में जाने पर मजबूर कर दिया था।
एक नजर यमन के हालातों पर

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