


52 मिनट पहले
- कॉपी लिंक

तस्वीर में डूमस्डे घड़ी नजर आ रही है, जिसमें आधी रात होने में सिर्फ 90 सेकेंड का समय बचा है।
दुनिया में बढ़ते तनाव और 2 जंगों के बीच अटॉमिक साइंटिस्ट्स ने डूमस्डे क्लॉक (विनाश की घड़ी) को रात के 12 बजने से सिर्फ 90 सेकेंड पहले सेट किया है। इस घड़ी में 12 बजने का मतलब है कि दुनिया में तबाही का समय आ गया है।
रॉयटर्स के मुताबिक, मंगलवार को घड़ी का समय बदलने के बाद वैज्ञानिकों ने कहा- पिछले 2 सालों से रूस-यूक्रेन के बीच जंग जारी है। इजराइल और हमास के युद्ध को भी साढ़े तीन महीने बीत चुके हैं। ऐसे में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का खतरा बढ़ रहा है। इसके अलावा क्लाइमेट चेंज पहले से दुनिया को तबाही की तरफ धकेल रहा है।

फुटेज में वैज्ञानिक डूमस्डे घड़ी से पर्दा हटाकर उसका समय दिखाते नजर आ रहे हैं।
वैज्ञानिक बोले- AI का इस्तेमाल बढ़ रहा, क्लाइमेट चेंज भी बड़ा फैक्टर
अटॉमिक साइंटिस्ट्स के बुलेटिन में बताया गया कि AI और बायोलॉजिकल रिसर्च जैसी खतरनाक तकनीकों का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है। लेकिन इनके खतरों से निपटने की तैयारी पूरी नहीं हुई है। बुलेटिन की अध्यक्ष रेचल ब्रॉनसन ने कहा- चीन, रूस और अमेरिका जैसे 3 बड़े देश अपनी परमाणु ताकत बढ़ाने पर काफी ज्यादा पैसे खर्च कर रहे हैं। इससे परमाणु जंग का खतरा बढ़ता जा रहा है।
रेचल ने आगे कहा- फरवरी 2023 में रूस ने अमेरिका के साथ न्यू स्टार्ट ट्रीटी को रद्द कर दिया था। इस समझौते का मकसद दोनों देशों में परमाणु हथियारों की संख्या को सीमित करना था। सिर्फ रूस और अमेरिका के पास ही दुनिया के 90 प्रतिशत परमाणु हथियार हैं। इसके अलावा मार्च 2023 में रूस ने अपने टैक्टिकल न्यूक्लियर हथियारों को बेलारूस में तैनात भी करवाया था।
वैज्ञानिकों ने कहा- रूस ने कई बार परमाणु हमले की धमकी दी
रूस के कई मंत्री और अधिकारी लगातार यूक्रेन पर परमाणु हमले की धमकी देते रहते हैं। रेचल ने बताया कि अक्टूबर 2023 में रूस ने न्यूक्लियर वेपेन की टेस्टिंग को बैन करने वाले कानून को भी हटा दिया था। दूसरी तरफ कई रिपोर्ट्स में चीन और नॉर्थ कोरिया के भी परमाणु हथियार बनाने के दावे किए जाते रहे हैं।
वहीं 2023 दुनिया का अब तक का सबसे गर्म साल रहा। ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी लगातार बढ़ता जा रहा है। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए ही डूमस्डे क्लॉक को तबाही से सिर्फ 90 सेकेंड की दूरी पर सेट किया गया है।

क्या है डूमस्डे घड़ी, कैसे करती है काम
बता दें कि डूमस्डे घड़ी का समय वैज्ञानिकों हर साल बदलते हैं। शिकागो के एक नॉन-प्रॉफिट संगठन ने 1947 में दूसरे विश्व युद्ध के बाद शीत युद्ध के तनाव के दौरान जनता को चेतावनी देने के लिए घड़ी बनाई थी। इसका मकसद यह बताना है कि मानव जाति दुनिया के अंत के कितने करीब है।
इस घड़ी को सेट करने की जिम्मेदारी अटॉमिक साइंटिस्ट बुलेटिन को सौंपी गई, जिसे 1945 में अलबर्ट आइंसटाइन और अमेरिका के लिए परमाणु हथियार बनाने वाले रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने बनाया था। डूमस्डे घड़ी का समय अब तक 25 बार बदला जा चुका है।
- 1947 में जब यह बनाई गई तो इसमें आधी रात होने में 7 मिनट का समय था।
- 1949 में सोवियत संघ ने न्यूक्लियर बम बनाया तो इस घड़ी में 12 बजने में सिर्फ 3 मिनट बचे थे।
- 1953 में अमेरिका ने हाइड्रोजन बम का टेस्ट किया, तब इस घड़ी में आधी रात के समय से 2 मिनट दूर सेट किया गया।
- 1991 में शीत युद्ध खत्म होने के बाद संगठन ने घड़ी को 12 बजे से 17 मिनट दूरी पर फिक्स किया था।
- 1998 में भारत-पाकिस्तान के न्यूक्लियर टेस्ट के बाद घड़ी में 9 मिनट बचे।
- 2023 में यूक्रेन युद्ध की वजह से घड़ी में आधी रात से 90 सेकंड बचे। अब भी वैज्ञानिकों के मुताबिक 90 सेकंड ही बचे हैं जो एक चिंता का विषय है।
[ad_2]
Source link