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Apart from genes, these factors determine the height of children, read The Hindu article of 5th November | जीन्‍स के अलावा इन फैक्‍टर्स से तय होता है बच्‍चों का कद, पढ़िए 5 नवंबर का आर्टिकल

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13 घंटे पहले

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पर्यावरण के तत्व जैसे सामाजिक-आर्थिक स्‍टेटस, पोषण और संक्रमण बच्चों के विकास को प्रभावित करते हैं: प्रशांत नकवे

एक महत्वपूर्ण खोज में वैज्ञानिकों ने देखा कि पर्यावरण के तत्व यूरोपीय देशों की तुलना में निम्न और मध्यम आय वाले देशों (LMICs) में बच्चों के कद को ज्यादा बुरी तरह से प्रभावित करते हैं। जबकि यूरोपीय देशों में जेनेटिक पहलू बच्चों के कद पर ज्यादा प्रभाव डालते हैं।

इस बात को हैदराबाद के सेंटर फॉर सेल्यूलर एंड मॉलिक्युलर बायोलॉजी तथा अन्य कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने अपने शोध में समझाया है। हाल ही में यह शोध नेचर कम्युनिकेशंस के जर्नल में छपा था।

मनुष्य का कद स्थाई जेनेटिक और बदलते पर्यावरण के तत्वों से प्रभावित होता है, इस शोध के लेखकों ने बताया कि तत्व जैसे लाइफस्‍टाइल, खान-पान और वातावरण जीन्स के काम करने के तरीके पर प्रभाव डालते हैं। एपीजेनेटिक बदलाव जिन रेगुलेशन और जीन एक्सप्रेशन को बदल देते हैं लेकिन DNA सीक्वेंस पर इसका कोई प्रभाव नहीं होता।

माना जाता है कि सामाजिक-आर्थिक स्तर, पोषण और संक्रमण जैसे वातावरण के तत्व बच्चों के विकास पर गहरा प्रभाव डालते हैं विशेष रूप से उनके कद पर। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन 2021 के अनुमानों को देखा जाए तो छोटे कद के अधिकांश बच्चे LMICs में पाए जाते हैं, विशेष रूप से दक्षिण एशिया और अफ्रीका के शहर क्षेत्र में जहां कम पोषण और उससे जुड़ी समस्याएं अमीर देशों ( HIC) की तुलना में कहीं ज्‍यादा हैं। शोध में दावा किया गया की इन कारणों से NMICs और अधिक आय वाले देशों के बीच कद में अंतर जेनेटिक कारकों के अलावा अन्‍य कारकों से भी होता है।

हालांकि, बचपन के शुरुआत में ही पर्यावरण के तत्वों के संपर्क में आने से उसका गहरा प्रभाव लंबे समय तक रहता है। निम्न और मध्यम आय वाले देशों में बच्चों के कद को लेकर कोई जीनोम आधारित एपीजेनेटिक शोध नहीं हुआ है। DNA मैथिलेशन और हिस्टोन बदलाव जीन एक्सप्रेशन पर प्रभाव डाल सकते हैं। सेल रसायनिक प्रक्रिया मैथिलेशन द्वारा DNA मॉलिक्यूल में बदलाव करके जीन एक्सप्रेशन को नियंत्रित करता है। यह खाने, दवाइयां, तनाव, केमिकल और विषैले तत्वों से संपर्क जैसे वातावरण के तत्वों से प्रभावित होता है।

इस शोध में वैज्ञानिकों ने एपीजीनोम–वाइड एसोसिएशन एनालिसिस और जीनोम–वाइड एसोसिएशन पर शोध से DNA मैथिलेशन और जेनेटिक अंतर में संबंध की जानकारी खोजी। इस शोध के लिए 5 बच्चों का समूह बनाया गया जिसमें से तीन भारत से थे एक गांबिया और एक अन्य यूनाइटेड किंगडम से था।

वैज्ञानिकों को SOCS3 जीन और उन बच्चों के कद में संबंध मिला जो निम्न और मध्यम आय वाले देशों से थे। यह प्रभाव उच्च आय वाले देश के बच्चे में भी दिखा लेकिन इसका असर बहुत ही कम था। कुल मिलाकर इस शोध में पाया गया कि गरीब देशों में जीनोम वाइड DNA मिथाइलेशन एसोसिएशन का बच्चों के कद से गहरा संबंध है। मजे की बात यह है कि, 12000 जेनेटिक वेरिएंट जिनकी हमें जानकारी है, भारतीयों में कद से संबंधित है लेकिन उनका असर यूरोपीय और अमेरिकी देश के लोगों पर कम है।

डॉ गिरिराज चंदक और CCMB के फेलो सर जे सी बोस के अनुसार, यूरोपीय और भारतीय लोगों में जेनेटिक रिस्क वेरिएशन एक समान होता है किंतु इसके प्रभाव का स्तर दोनों के वंश के आधार पर अलग-अलग होता है। हालांकि, NMIC में रह रहे बच्चों के जेनेटिक रिस्क में वातावरण के तत्वों की वजह से बदलाव संभव है। उन्होंने बताया कि, निम्न और मध्यम आय वाले देशों जैसे भारत के बच्चों के एपिजेनेटिक प्रक्रिया पर प्रभाव डालने वाले पर्यावरण के तत्व अलग हैं, इसलिए यूरोपीय एपीजेनेटिक नियंत्रण पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

वाई. मल्लिकार्जुन विज्ञान और स्वास्थ्य के विषयों पर फ्रीलांस लेखक हैं
Source: The Hindu

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