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It is important to reach the higher authorities about the problems related to the functioning of the Indian Police, read the hindu editorial of 13 January. | The Hindu हिंदी में: भारतीय पुलिस की कार्यप्रणाली से जुड़ी समस्याओं की जानकारी उच्च अधिकारियों तक पहुंचना जरूरी है, पढ़िए 13 जनवरी का एडिटोरियल

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3 घंटे पहले

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जयपुर में, जनवरी के पहले हफ्ते में हुई तीन दिवसीय पुलिस सम्मेलन में पूरे भारत के पुलिस महानिदेशकों ने भाग लिया।

इस सम्मेलन का उद्देश्य न केवल अभी की मौजूदा स्थिति को जानने का एक अवसर था, बल्कि इससे बहुत कुछ सीखने का भी एक अनुभव था।

इस सम्मेलन में सूचना प्रौद्योगिकी (Information Technology) के क्षेत्र में आधुनिक योग्यता के विषय, एजेंडे का मुख्य केंद्र थे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सम्मेलन में भाग लिया और कई पुलिस अधिकारियों से व्यक्तिगत रूप से बातचीत की।

इस बातचीत से यह संकेत मिलते है कि देश में कानून को लागू करने पर बल दिया जा रहा है, और साथ ही प्रशासन के पास सक्षम पुलिसिंग में उच्च हिस्सेदारी है।

जनता के बीच पुलिस की छवि और संघीय मुद्दे

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत की स्वतंत्रता के सात दशकों बाद भी, नागरिकों के लिए कोई ऐसा संगठन नहीं है जो सबसे गरीब लोगों तक अपनी पहुंच बना सके।

इस वजह से, पुलिस बल के मदद करने के उनके अच्छे इरादों के बावजूद कोई सुधार नहीं हुआ है।

केंद्र और कुछ विपक्ष-शासित राज्यों के बीच बढ़ता मतभेद एक अलग परेशानी है। आने वाले सालों में यह स्थिति और बिगड़ने की संभावना है। लेखक कहते हैं कि उन्हें आश्चर्य है कि जयपुर में हुए सम्मेलन में इस मुद्दे पर चर्चा हुई थी।

प्रवर्तन निदेशालय (ED) और संघीय शासन (federal governance) के लिए इसके पहलू को जल्द से जल्द सुलझाना होगा।

हाल ही में, भारत में कुछ जगहों पर ED के अधिकारियों पर हमलें बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे नई दिल्ली और राज्यों के बीच बढ़ते मतभेद एक गंभीर बात है।

आधुनिक तकनीक के साथ सहज होता पुलिस बल

हालांकि, पुलिस के बारे में कहना होगा कि वह अपने आप को नई तकनीक के साथ अपडेट कर रही है। ऐसा इसलिए संभव है क्योंकि आज हमारे पास क्लर्क लेवल पर पहले से ज्यादा शिक्षित पुलिस कर्मी हैं।

ऐसा इसलिए नहीं है कि भारतीय युवा पुलिस बल में अपने करियर को बहुत ऊंचा आंकते हैं। बल्कि, भारत में बढ़ती बेरोजगारी की दर की वजह से कई लोग पुलिस की नौकरी को चुनने के लिए प्रेरित हो रहे हैं।

लेकिन, सवाल यह है कि क्या कॉन्स्टेबल या सब-इंस्पेक्टर बनने वाले युवाओं (ये दो रैंक हैं, जिनमें सीधी भर्ती होती है) को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिलेगा?

यह इसलिए भी होता है कि इंडियन पुलिस सर्विस (IPS) के अधिकारी ही सारी वाहवाही बटोर लेते हैं और कॉन्स्टेबल या सब-इंस्पेक्टर को यह मौका नहीं मिलता।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी (science and technology) की जानकारी रखने वाले योग्य उम्मीदवारों को छोड़कर, सभी भर्तियां अपने सबसे निचले पायदान से शुरू होती है और रैंक के हिसाब से बढ़ती जाती है।

दूसरी तरफ, यह IPS के खिलाफ तर्क है, इस तथ्य के बावजूद कि IPS अधिकारी को उसके तेज दिमाग और उत्साह के लिए ऊंचा दर्जा दिया जाता है।

इसी के साथ, एक नवीनीकरण जो उच्च और निम्न रैंकों के बीच की दूरी को कम करता है, वह पुलिस की गुणवत्ता में की गयी कोई भी कोशिश में मदद कर सकता है।

भारत में, पुलिस बल की छवि में सुधार लाने के साथ पुलिस को आम आदमी के लिए सहानुभूति, ज्ञान और ईमानदारी को साथ लेकर चलना होगा।

यह एक महत्वाकांक्षी कदम है, लेकिन अगर उच्च अधिकारी सही ढंग से चीजों को बदलने की कोशिश करें, तो स्थितियां बदल सकती हैं।

दुर्भाग्य से, IPS अधिकारियों में सबसे निचले स्तर को शिक्षित करने की चिंता स्पष्ट नहीं है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पदानुक्रम का ढांचा (structure of the hierarchy) कांस्टेबल के साथ बातचीत या उसे अपडेट करने के खिलाफ काम करता है।

DGP और उनके निचले स्तर पर काम करने वाले सबोर्डिनेट्स क्यों नहीं कुछ समय के लिए महत्वपूर्ण जानकारियों या अपने ज्ञान को साझा करते, कि कैसे वह आम आदमी तक अपनी पहुंच बनाने में सफल होंगे?

पुलिस बल पर राजनीतिक दबाव

पुलिसिंग पर कोई चर्चा पुलिस बल के राजनीतिकरण की लगातार शिकायत का हवाला दिए बिना पूरी नहीं हो सकती। हमारे पुलिसकर्मियों को राजनीतिक दखल से कैसे अलग रखा जाए, यह सवाल पुलिस पर हो रही सभी बहसों पर हावी रहता है। यह जटिल समस्या लोकतांत्रिक शासन प्रणाली से जुड़ी हुई है।

इसी के चलते, जमीनी स्तर के राजनेताओं द्वारा एकदम (knotty) की गयी अवैध मांग को विनम्रता से ‘नहीं’ कहना एक कला है, जो बहुत से लोग नहीं कर सकते।

यह पुलिसिंग का एक पहलू है जो आने वाले दशकों तक जारी रहेगा।

जब तक पूरी राजनीति नहीं बदलती तब तक पुलिस बल को स्वतंत्रता और परिचालन स्वायत्तता (autonomy of operation) सुनिश्चित करना एक सपने की तरह है।

इसके साथ ही, पुलिस को अकेले राजनीतिक निर्देशों का गुलाम कहना मूल में ही बेमानी है।

लेखक: आर.के. राघवन केंद्रीय जांच ब्यूरो के पूर्व निदेशक हैं।

Source: The Hindu

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