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- What Is The Rwanda Deal? What Decision Did The UK Supreme Court Give On This, Read The Editorial Of 23 November
एक घंटा पहले
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हाल ही में ब्रिटेन सरकार ने अपने यहां शरण मांगने वाले शरणार्थियों को नहीं रखने का फैसला करते हुए, उन्हें रवांडा भेजने के लिए एक सिस्टम तैयार किया था, जिसे ब्रिटेन सुप्रीम कोर्ट ने गैरकानूनी बता दिया है।
क्या है रवांडा डील?
अप्रैल 2022 में प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने प्रवासन (Migration) और आर्थिक विकास साझेदारी (MEDP) की घोषणा की थी।
इस सौदे का उद्देश्य, एक ऐसा ‘सिस्टम’ बनाना था, जिससे ऐसे शरणार्थी, जिसे ब्रिटेन ने स्वीकार नहीं किया है, उन्हें रवांडा से यूके भेजा जा सके।
यूके, शरणार्थियों को वापस भेजने में ‘अस्वीकृति क्लोज’ एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। जिससे इंग्लिश चैनल के पार कर यूके में घुसने वाले लोगों की पहचान करने में मदद मिलेगी।
दोनों देशों के बीच हुए समझौते (MoU) के अनुसार, ब्रिटेन, शरण चाहने वाले नागरिकों की जांच करेगा और उनके लिए रवांडा तक सुरक्षित ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था भी करेगा।
शरणार्थियों के आने पर, रवांडा के हर नागरिक को घर देना और उनके प्रति होने वाले किसी भी दुर्व्यवहार को रोकना ही होगा।
हालांकि, रवांडा के पास किसी भी शरणार्थी की पहचान का अधिकार होगा। यदि रवांडा, किसी को अपने देश में शरण नहीं देना चाहता, तब उसे वापस उसके देश भेज दिया जाएगा।
ब्रिटेन ने रवांडा को क्यों चुना?

यूके घर और ट्रांसपोर्ट के सारे खर्चे उठाएगा। हालांकि, रवांडा संपर्क करने वाला पहला देश नहीं था, इससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने तंजानिया को शरण देने का दावा करके मनाने की कोशिश की थी, लेकिन वो इसमें असफल रहे।
ब्रिटेन के कोलोनियल इतिहास से आज की स्थिति मेल खाती है, जहां ये प्रवासी श्रमिकों के कुछ विशेष वर्गों को देश के कुछ हिस्सों में भेजता था। इतिहास बताता है कि यूके ने आर्थिक विकास की आड़ में शरणार्थियों के साथ कोलोनाइज शहरों को पहले भी बसाया है।
इसमें MEDP योजना शरणार्थियों को बिखेरने यानी यहां-वहां करने की एक योजना है।
इसे गैरकानूनी क्यों करार दिया गया?
ये फैसला दो बड़े मुद्दों पर आधारित था। एक, हाईकोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप करने की अपील कोर्ट का अधिकार है। दूसरा, यदि अपील कोर्ट ने रवांडा जाने पर शरण चाहने वालों के लिए क्या वाकई जोखिम है, इस पर ध्यान दिया हो।

सबसे पहले तो सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को ‘गलत’ पाया, क्योंकि वो रिफाउलमेंट (शरणार्थी को उनके देश भेजने के लिए मजबूर करना) के जोखिम के सबूत जुटाने में असफल रहा है।
यूरोपीय कोर्ट के अनुसार, शरणार्थियों को वापस लौटने से बचाने के लिए और शरण को सुनिश्चित करना ब्रिटेन की जिम्मेदारी है, इसके बजाय, हाई कोर्ट ने रवांडा की इक्स्पर्टीज और वादे को मान्यता दी।
दूसरा, सुप्रीम कोर्ट को इस बात के सबूत मिले कि शरण चाहने वालों (रिफाउलमेंट) के वापस जाने पर दुर्व्यवहार का जोखिम उठाना पड़ता है। हयूनम राइट्स के ट्रेक रिकॉर्ड और उसके दिए भरोसे को पूरा नहीं करते हुए, जोखिम के विचार करने के उदाहरण की तरह देखता है।
जबकि रवांडा, ब्रिटेन का एक प्रमुख हिस्सेदार बन गया है, कोर्ट ने 1994 में रवांडा में हुई हिंसा पर भी बात की और ह्यूमन राइट्स रिकॉर्ड के लिए इस फैसले को जरूरी माना।
घरेलू प्रतिक्रियाएं इतनी मिली-जुली क्यों हैं?
अलग-अलग तरह की धारणाओं की वजह से, शरणार्थियों को मिलने वाली कानूनी सुविधाओं और व्यवस्था में कुछ भी निश्चित नहीं है।
सिविल सोसायटी ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार, यूके और रवांडा के बीच सुरक्षित आवाजाही और अधिकारों की गारंटी देने के लिए यूके और रवांडा के बीच दोहरा नियम बनाना संभव नहीं है।
UNHCR ने साफ तौर पर कहा है कि यदि एक बार कोई शरणार्थी जमीन या समुद्र के रास्ते किसी भी हिस्से में प्रवेश करता है, तो शरणार्थी की सुरक्षा करना संबंधित देश की जिम्मेदारी बन जाती है।
इस मामले में, शरणार्थी को रवांडा भेजने के बाद भी ब्रिटेन को इस जिम्मेदारी से मुक्त नहीं किया जा सकता है। जबकि यूके सरकार विकास के लिए शरणार्थियों और रवांडा की अर्थव्यवस्था में एक साथ निवेश करने को लेकर तर्क दे रही है।
हालांकि, रिफाउलमेंट और अन्य मामलों में देशों के बीच इसके प्रभाव को लेकर डाउट खत्म नहीं हो रहा है। इससे बाकी देश भी इस तरह की योजनाओं पर विचार करने के लिए प्रेरित हो सकते हैं। जिससे ह्यूमन राइटस के स्टैंडर्ड में कमी आएगी और तीसरे पक्ष के देशों में शरणार्थियों के लिए जोखिम बढ़ जाएगा।
लेखक: पद्मश्री अन्नधन, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज में रिसर्च एसोसिएट हैं।
Source: The Hindu
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