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34 साल बाद लोकसभा चुनाव से बंसी परिवार बाहर:3 पीढ़ियों ने 11 इलेक्शन लड़े, हिसार में 15 साल बाद भजन फैमिली से कोई नहीं

34 साल बाद यह पहला लोकसभा चुनाव होगा जब बंसीलाल परिवार का कोई सदस्य चुनाव मैदान में नहीं होगा। 26 साल बाद भजन लाल परिवार भी चुनाव मैदान से बाहर है। यही नहीं 15 साल बाद हिसार सीट पर भजन परिवार से कोई नहीं है। दिलचस्प यह है कि चौधरी देवीलाल परिवार से हिसार सीट पर ही 3 प्रत्याशी मैदान में होंगे, वो भी अलग-अलग पार्टियों से।

भजन लाल 1989 में पहली बार फरीदाबाद से लोकसभा चुनाव जीते थे। 1998 में करनाल से जीते थे। 2009 से 2019 तक इस परिवार ने हिसार सीट से 4 चुनाव लड़े। रोहतक में कांग्रेस ने दीपेंद्र हुड्डा को 5वीं बार मैदान में उतारा है।

इस बार जीते तो उनके पास पिता के 4 जीत के रिकॉर्ड की बराबरी का मौका होगा। करनाल से उतारे गए 31 वर्षीय दिव्यांशु बुद्धिराजा कांग्रेस के सबसे युवा प्रत्याशी हैं। पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा की चली है।

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भिवानी-महेंद्रगढ़: 1977 से 2019 तक बंसी परिवार की 3 पीढ़ियों ने 11 चुनाव लड़े
राव दान सिंह को मौका मिला है। 1977 में पहली बार बंसीलाल भिवानी सीट से चुनाव लड़े थे। उसके बाद से सिर्फ 1991 में ऐसा मौका रहा जब इस परिवार से यहां कोई चुनाव मैदान में नहीं उतरा। हालांकि 1991 में भी उनकी हविपा ने ही सीट जीती थी। इस सीट पर बंसी परिवार की 3 पीढ़ियों ने कुल 11 चुनाव लड़े और 6 बार जीते थे। पिछले दो बार से बंसी की पोती श्रुति चुनाव हार रहीं थी। 2 बार सुरेंद्र और एक बार बंसी हारे थे।

हिसार: 35 साल पहले जेपी यहां पहली बार सांसद बने थे, 13 साल बाद मैदान में
जयप्रकाश उर्फ जेपी पहली बार 1989 में हिसार से पहली बार सांसद बने थे। तब वो जनता दल से मैदान में थे। कुल मिलाकर 7 बार यहां से चुनाव लड़े और 3 बार जीते। तीनों बार पार्टी अलग थी। आखिरी बार 2004 में जेपी कांग्रेस के टिकट पर इस सीट से सांसद बने। उन्होंने 2011 में हिसार लोकसभा का उपचुनाव लड़ा था। 2022 में आमदपुर से भव्य के सामने विधानसभा उपचुनाव भी लड़ा।

फरीदाबाद: इस बार भी गुर्जर बनाम गुर्जर, 25 साल पहले जाट सांसद बने थे
भाजपा ने 5 बार के विधायक महेंद्र प्रताप को चुनाव में उतारा है। भाजपा प्रत्याशी कृष्णपाल हैं। दोनों प्रत्याशी गुर्जर समाज से हैं। 2009 के बाद से यहां प्रमुख पार्टियां इसी समुदाय पर दांव लगाती रही हैं। आखिरी बार 25 साल पहले यानी 1999 में यहां से जाट प्रत्याशी रामचंद्र बैंदा ने जीत की हैट्रिक लगाई थी। इस बार कृष्णपाल गुर्जर के लिए हैट्रिक लगाने का मौका है और महेंद्र प्रताप के जिम्मे उन्हें रोकना।

सोनीपत: पहली बार यहां से कोई बड़ा जाट चेहरा मैदान में नहीं, ब्राह्मणों पर दांव
जाट बाहुल्य सोनीपत सीट पर पहली बार ब्राह्मण बनाम ब्राह्मण चुनाव देखने को मिलेगा। हर बार यहां से कोई न कोई बड़ा जाट चेहरा मैदान में रहता था। 1996 में पहला ऐसा मौका था जब डॉ. अरविंद शर्मा ने जाट प्रत्याशियों के सामने निर्दलीय चुनाव जीतकर समीकरण पलट दिए थे। दो बार से यहां भाजपा ब्राह्मण पर दांव खेल रही थी, इस बार कांग्रेस ने भी वही दांव चला।

सिरसा: 20 साल बाद सैलजा की वापसी, दो पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष भिड़ेंगे
कुमारी सैलजा ने 20 साल बाद अपने गृहक्षेत्र सिरसा में वापसी की है। इस सीट से उनके पिता चौधरी दलबीर सिंह 4 बार और सैलजा 2 बार सांसद रहीं थी। 1998 में सैलजा ने यहां से अपना आखिरी चुनाव लड़ा था, उसके बाद 2004 में अंबाला सीट पर शिफ्ट हो गईं थी। सिरसा में उनका मुकाबला भाजपा के अशोक तंवर से होगा। दोनों कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं।

अंबाला: 25 साल बाद चौधरी व कटारिया परिवार में हुआ आमना-सामना
अंबाला आरक्षित सीट पर कांग्रेस ने मुलाना से वर्तमान में विधायक वरूण चौधरी को प्रत्याशी बनाया है। इससे पहले उनके पिता फूलचंद मुलाना 1999 में इस सीट से चुनाव लड़े थे, तब उनका मुकाबला भाजपा के रत्नलाल कटारिया से हुआ था। तब जीत कटारिया को मिली थी। कटारिया के निधन के बाद इस बार उनकी पत्नी बंतो कटारिया को भाजपा ने प्रत्याशी बनाया है।

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