अयोध्या में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा की घड़ी आ चुकी है और इसके साथ ही राम मंदिर बनाने के लिए शुरू हुआ आंदोलन अपनी परिणति पर पहुंच गया है।
आंदोलन के इस मुकाम तक पहुंचने के पीछे लंबा संघर्ष रहा जिसमें अनेक रामभक्तों ने कुर्बानियां दीं। अयोध्या के अंदर 1990 और 1992 में हुई कारसेवा में शामिल रामभक्तों को आज हर तरफ याद किया जा रहा है। हरियाणा BJP के वरिष्ठ नेता और प्रदेश के कैबिनेट मंत्री अनिल विज भी अयोध्या की कारसेवा में शामिल रहे।
राममंदिर आंदोलन के साक्षी रहे अनिल विज ने दैनिक भास्कर से बातचीत में उस कारसेवा और उससे पहले व बाद में जो कुछ देखा-भुगता, उसे याद किया।
6 दिसंबर 1992 में कारसेवकों ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढहाई थी
1990 में छोटी सी टोली के साथ पहुंचे लखनऊ
विज बताते हैं- मैं 1990 और 1992, दोनों बार अयोध्या गया। 1990 में यूपी में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। हम कारसेवा के लिए अंबाला से बड़ा जत्था लेकर ट्रेन से रवाना हुए। दिल्ली तक सफर ठीक रहा लेकिन दिल्ली के बाद पुलिस ने हमारे कई लोगों को पकड़कर गाड़ी से उतार लिया और अपने साथ ले गई। हालांकि मैं छोटी सी टोली के साथ ट्रेन में लखनऊ तक पहुंचने में कामयाब रहा।
लखनऊ स्टेशन से पहले उतरे तो समझ गए कि मोहल्ला ठीक नहीं
विज के मुताबिक, हमारी ट्रेन लखनऊ स्टेशन से काफी पहले आउटर पर रुकी तो ट्रेन में सवार कुछ लोगों ने सलाह दी कि यहीं उतर जाओ क्योंकि आगे स्टेशन पर बहुत अधिक पुलिस फोर्स खड़ी है। लोगों की सलाह मानकर हमारी टोली वहीं उतर गई। उस समय तक हमें उस जगह का नाम पता नहीं था, लेकिन पटरियां पार करते ही हमें समझ आ गया कि यह मोहल्ला ठीक नहीं है।
लोगों की सलाह पर मंदिर में शरण ली
विज के अनुसार, हमारे वहां पहुंचते ही इलाके में कुछ मोटरसाइकिलें दौड़ने लगी। उसी समय कुछ लोग हमारे पास पहुंचे और कहा कि आगे एक मंदिर हैं, आप वहां चले जाओ। मंदिर के अंदर आप लोग सेफ रहोगे। तब तक हमें भी समझ आ चुका था कि हम ट्रेन से गलत मोहल्ले में उतर गए हैं। हम चुपचाप उस मंदिर में चले गए जो लोगों ने बताया था।
यूपी पुलिस मन से कारसेवकों के साथ थी
विज कहते हैं- हमारे मंदिर पहुंचने के कुछ देर बाद ही पुलिस की एक बस वहां पहुंच गई। संभवत: किसी ने पुलिस को टेलीफोन करके हमारे बारे में सूचना दे दी थी। पुलिस ने हमें गिरफ्तार कर लिया। उस समय हालात जैसे भी रहे हों, लेकिन पुलिसवालों ने हमारे साथ ठीक व्यवहार किया।
उस समय ड्यूटी पर मौजूद थानेदार हमसे बोला कि वह सिर्फ ड्यूटी कर रहे हैं और अगर वह पुलिस में नहीं होते तो हमारे साथ अयोध्या जा रहे होते। थानेदार की वो बात सुनकर हमें काफी तसल्ली हुई।
लखनऊ की जेलें फुल, उन्नाव जेल में काटे 10-15 दिन
विज के अनुसार, उस समय तक लखनऊ की सारी जेलें भर चुकीं थी, इसलिए पुलिस ने हमें उन्नाव जेल में शिफ्ट कर दिया। मैं अपने साथियों के साथ 10-15 दिन उन्नाव जेल में रहा। हमें जेल के अंदर ही खबर मिली कि मुलायम सिंह सरकार के आदेश पर पुलिस फायरिंग में कई लोग मारे गए हैं।
तत्कालीन CM मुलायम सिंह बार-बार दावा कर रहे थे कि अयोध्या में चिड़िया को भी पर नहीं मारने देंगे, लेकिन राम भक्त वहां तक पहुंच चुके थे। पुलिस की गोलियों से काफी लोग शहीद हो गए।
1992 में हफ्ते पहले ही पहुंच गए अयोध्या
अनिल विज पूरी यात्रा को याद करते हुए कुछ पल के लिए रुके। फिर बोले- 1992 की कारसेवा के लिए मेरी ड्यूटी पहले ही लग गई थी। मैं 6 दिसंबर 1992 से हफ्ते पहले ही अयोध्या पहुंच गया था। उस समय मैंने अयोध्या का चप्पा-चप्पा घूमकर देखा। तब मुझे यह देखकर बहुत दुख हुआ कि वहां सभी देवताओं के मंदिर थे, सबके भवन बने हुए थे लेकिन राम का मंदिर वहां कहीं नहीं था।
6 दिसंबर 1992 को प्रतीकात्मक कारसेवा
विज बताते हैं कि 6 दिसंबर को अयोध्या में बहुत बड़ी रैली हुई। सारे नेता रैली के मंच पर मौजूद थे। मंच से बार-बार घोषणा की जा रही थी कि कोई कुछ नहीं करेगा। प्रतीकात्मक कारसेवा के रूप में सिर्फ सरयू नदी से एक मुट्ठी रेत भरकर लाई जाएगी और उसे मंदिर के आगे रखकर सभी लोग चुपचाप वहां से चले जाएंगे।
रामभक्तों ने देखते ही देखते गिरा दिया मस्जिद का ढांचा
विज बताते हैं कि 6 दिसंबर को उस प्रतीकात्मक कारसेवा के बाद कुछ रामभक्तों की सहनशक्ति जवाब दे गई। सब्र का बांध टूटते ही लोग बाबरी मस्जिद के ढांचे पर चढ़ गए। मैं तब ढांचे के बिल्कुल नजदीक था। मैंने देखा कि लोग पहले ढांचे पर हाथ-पैर मार रहे थे, लेकिन जब ढांचा नहीं टूटा तो कुछ लोग नीचे उतरकर आसपास के घरों में पहुंचे। उन घरों में जिसे जो मिला, उठा लाए। लोगों के हाथों में हथौड़े, कस्सी, गैंतियां थीं।
कारसेवकों ने देखते ही देखते रामजन्म भूमि पर मुगल बादशाह बाबर की ओर से बनाई गई जुल्म की बिल्डिंग को धराशाही कर दिया। वो सबकुछ मेरी आंखों के सामने हुआ। मैं उस इतिहास का साक्षी भी हूं और हिस्सा भी हूं।
यूपी के पूर्व CM कल्याण सिंह।
यूपी के CM कल्याण सिंह ने कह दिया था– गोली नहीं चलाऊंगा
अनिल विज कहते हैं कि ढांचा गिराने के समय रैली के मंच पर लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती और दूसरे नेता मौजूद थे लेकिन उस वक्त ये किसी ने नहीं देखा कि कौन किसकी अगुवाई कर रहा है? 200-300 लोगों के समूह के सामने जो कुछ आया, ढह गया।
विज के अनुसार, ढांचा गिराने वाले कारसेवकों के खिलाफ पुलिस ने उस दिन कोई एक्शन नहीं लिया। यूपी में तब BJP की सरकार थी। तत्कालीन CM कल्याण सिंह ने पहले ही कह दिया था कि वह कारसेवकों पर गोली नहीं चलवाएंगे। 1990 में जहां यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने कारसेवकों पर गोलियां चलवाईं वहीं 1992 में कल्याण सिंह ने ऐसा कुछ नहीं किया।
कई गांवों में गाड़ियों पर पथराव हुआ
अनिल विज बताते हैं कि 6 दिसंबर को विवादित ढांचा ढहने के बाद भाजपा नेताओं ने सभी कारसेवकों को अपने-अपने घर लौटने के निर्देश दिए। हम भी अपनी गाड़ी से अंबाला के लिए चल पड़े। रास्ते में कई गांवों से गुजरते समय हमारी गाड़ियों पर जबरदस्त पथराव किया गया। हालांकि हम सकुशल अंबाला पहुंचने में कामयाब रहे।
1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद कांग्रेस की तत्कालीन केंद्र सरकार ने 4 राज्यों में चल रही BJP की सरकारों को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया।
केंद्र सरकार ने बैंक खाता फ्रीज कर दिया
1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर बैन लगा दिया। इसके साथ ही अंबाला जिले में 3 लोगों के बैंक अकाउंट फ्रीज कर दिए गए। इनमें एक अकाउंट अनिल विज का था और दूसरा मास्टर शिव प्रसाद का। तीसरे शख्स कालका के थे। विज कहते हैं कि मेरे बैंक खाते में उस समय था ही कुछ नहीं इसलिए फर्क भी नहीं पड़ा।
विज के अनुसार, 1947 में देश आजाद होने के बाद RSS पर बैन लगाने का वो तीसरा मौका था। पहली बार RSS पर प्रतिबंध तब लगा जब 1948 में RSS के पूर्व मेंबर नाथूराम गोडसे ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या कर दी। दूसरी बार 1975 से 1977 में इमरजेंसी के दौरान RSS पर बैन लगाया गया। तीसरी बार बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद।
दिल्ली में जब RSS पर प्रतिबंध के विरोध में बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी द्वारा गिरफ्तारी दी जानी थी तो उस समय अनिल विज उनके साथ थे।
आंसू गैस के गोले चले तो आडवाणी जी के साथ थे
विज ने बताया कि RSS पर प्रतिबंध के विरोध में दिल्ली में बड़ी रैली रखी गई। रैली में उन्हें उस जगह रहना था जहां लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तारी देनी थी। रैली में कई हजार लोग पहुंचे हुए थे। भीड़ को रोकने के लिए पुलिस ने जमकर आंसू गैस के गोले चलाए। उनकी गैस से आंखों में जलन हुई तो सारे लोग भाग गए। मैं अकेला आडवाणी जी के आगे खड़ा था। मेरी आंखों से पानी बह रहा था। तब आडवाणी जी ने मुझसे कहा कि वह गिरफ्तारी देंगे, पुलिस से आंसू गैस के गोले चलाना बंद करने को कहो।
मैं सड़क पर खड़े एसएचओ के पास गया और उससे कहा कि आडवाणी जी गिरफ्तारी देंगे। एसएचओ मेरी बात सुनकर इधर-उधर देखने लगा। फिर उसने किसी से बातकर जिप्सी बुलाई। आडवाणी जी को उस जिप्सी की पिछली सीट पर बैठाया गया।
प्रदर्शन के दौरान सिर में खाई लाठी
जब मैं भी जिप्सी में बैठने लगा तो आडवाणी जी ने मुझे रोक दिया और कहा कि मैं बाकी लोगों को भी गिरफ्तारी देने का मैसेज पहुंचा दूं। मैंने वहां खड़े अपने एक साथी से बसें बुलवाने को कहा ताकि सब लोग गिरफ्तारी दे सकें। हम बसों में बैठने लगे। उसी समय वहां एक बस पहुंची जिसके गेट पर रामबिलास शर्मा (हरियाणा के पूर्व मंत्री) लटके हुए थे।
रामबिलास शर्मा जी ने मुझसे आगे बढ़ने को कहा। उनका आदेश सुनते ही हमने बसों में बैठने की बजाय पुलिस के बैरिकेड्स की तरफ बढ़ना शुरू कर दिया। पुलिसवालों ने हमें रोका मगर हम नहीं रुके। उसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया। उसी में एक लाठी मेरे सिर में लगी। तब तो खून गर्म था इसलिए पता नहीं चला। बाद में पता चला कि लाठी लगने से सिर में गांठ बन चुकी है। इसी गांठ का 30 साल बाद, पिछले साल ही मैंने ऑपरेशन कराया है।