9 मिनट पहलेलेखक: ईफत कुरैशी
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तारीख– 14 जुलाई 2023।
जगह- पुणे के अंबी गांव इलाके का एक किराए का फ्लैट।
उस फ्लैट में पिछले कई महीनों से एक बुजुर्ग व्यक्ति अकेला चंद जरूरत के सामान के साथ रह रहा था। न किसी का आना-जाना था, न ही वो बुजुर्ग व्यक्ति आस-पड़ोस के लोगों से कोई राब्ता रखता था।
एक दिन पड़ोसियों को उस फ्लैट से तेज दुर्गंध आई। पड़ोसियों ने पहले दिन दुर्गंध नजरअंदाज कर दी, लेकिन अगले दिन फ्लैट से आ रही बदबू से सांस लेना भी मुश्किल होने लगा। वो कोई आम गंध नहीं थी, मानो जैसे कई दिनों से कुछ पड़ा-पड़ा सड़ रहा हो। अनहोनी का आभास होने पर पड़ोसियों ने 14 जुलाई 2023 को अंबी गांव पुलिस को खबर दी। पुलिस ने पहुंचते ही पड़ोसियों की मदद से जब दरवाजा तोड़ा, तो अधेड़ उम्र का वो शख्स जमीन पर पड़ा हुआ था। उसकी मौत कुछ दिन पहले ही हो चुकी थी, जिससे शरीर पड़ा-पड़ा सड़ने लगा था।
पुलिस ने उस फ्लैट से उस बुजुर्ग व्यक्ति के पास पड़े मोबाइल फोन से कुछ दिनों पहले डायल किए हुए नंबर्स पर कॉल किया। स्पीड डायल में पहला नंबर था टीवी इंडस्ट्री के मशहूर एक्टर गश्मीर महाजनी का, जो टीवी शो इमली में लीड रोल निभाकर घर-घर फेमस हुए थे। उन्होंने मरने वाले शख्स की पहचान अपने पिता के रूप में की। जब उनकी पहचान उजागर हुई तो ये जानकर पड़ोसी हैरान थे कि गरीबी और अकेलेपन में गुजारा करने वाला वो बुजुर्ग शख्स कोई और नहीं बल्कि 80 के दशक में मराठी सिनेमा का स्टार रविंद्र महाजनी था।
रविंद्र महाजनी के कमरे की तस्वीर।
आज अनसुनी दास्तान के 3 चैप्टर्स में पढ़िए रविंद्र महाजनी के फिल्मी सफर, कामयाबी और पारिवारिक मतभेद की कहानी-
7 अक्टूबर 1946 को रविंद्र महाजनी का जन्म बॉम्बे (अब मुंबई) में हुआ था। उनके पिता एच.आर. महाजनी आजादी से पहले इंडियन इंडिपेंडेट मूवमेंट के लीडर और जाने-माने राइटर थे। आजादी के बाद वो मुंबई आकर बस गए, जहां वो मराठी डेली लोकसत्ता अखबार के संपादक थे।
सपनों के शहर मुंबई में पले-बढ़े रविंद्र महाजनी बचपन से ही अभिनेता बनने का ख्वाब देखा करते थे। उन्होंने मुंबई की किंग जॉर्ज स्कूल (अब आई.ई.एस स्कूल) से पढ़ाई पूरी की थी। स्कूल के दिनों में वो अकसर नाटकों में हिस्सा लिया करते थे। स्कूलिंग पूरी करने के बाद उन्होंने मुंबई के ही खालसा कॉलेज से आर्ट्स की डिग्री ली। कॉलेज के दिनों में उनका अभिनय की तरफ झुकाव बढ़ने लगा। कॉलेज के दिनों में उनकी दोस्ती मशहूर डायरेक्टर शेखर कपूर से हुई, जो उस समय फिल्मों में जगह बनाने की जद्दोजहद कर रहे थे।
घर चलाने के लिए टैक्सी ड्राइवर बने रविंद्र महाजनी
रविंद्र महाजनी की जिंदगी में सबकुछ ठीक था, लेकिन जब 18 अगस्त 1969 को उनके पिता एच.आर. महाजनी का अचानक निधन हो गया, तो परिवार के सामने आर्थिक संकट आ गया। जब कहीं कोई नौकरी नहीं मिली, तो रविंद्र ने ग्रेजुएट होने के बावजूद टैक्सी चलानी शुरू कर दी। लेकिन मजबूरी में भी उन्होंने अपने सपने की कुर्बानी नहीं दी। वो रोज देर रात तक टैक्सी चलाकर कमाई करते थे और दिन भर फिल्म प्रोड्यूसर्स के दफ्तरों के चक्कर काटकर ऑडिशन दिया करते थे।
अमिताभ बच्चन के साथ सात हिंदुस्तानी से की करियर की शुरुआत
लगातार दिए गए ऑडिशन की बदौतल रविंद्र महाजनी को साल 1969 में रिलीज हुई ख्वाजा अहमद अब्बास की फिल्म सात हिंदुस्तानी में पुलिस इंस्पेक्टर का रोल मिला था। रविंद्र महाजनी के साथ-साथ ये अमिताभ बच्चन के करियर की भी पहली फिल्म थी। हालांकि, इस फिल्म से न अमिताभ बच्चन को पहचान मिली, न रविंद्र को।
मराठी प्ले की बदौलत मिली मराठी सिनेमा में जगह
फिल्म सात हिंदुस्तानी के बाद रविंद्र को कोई दूसरी फिल्म नहीं मिली। ऐसे में वो अभिनय के लिए मराठी थिएटर से जुड़ गए। मराठी थिएटर की दुनिया में उन्हें मधुसुदान कालेकर के प्ले जनता अजंता से पहचान मिली थी। इसी प्ले की बदौलत उन्हें फिल्म राजहंस एक में जगह दी गई थी।
इस फिल्म के बाद 4 साल तक रविंद्र को कोई फिल्म नहीं मिली। रविंद्र सालों तक थिएटर से जुड़कर ही अभिनय किया करते थे। ये प्ले भी सफल रहा और उनके हुनर को परखते हुए उस जमाने के मशहूर फिल्ममेकर वी.शांताराम ने उन्हें मराठी फिल्म झुंज में कास्ट कर लिया।
फिल्म झुंज को वी.शांताराम के बेटे किरण शांताराम ने डायरेक्ट किया था। 1975 में रिलीज हुई ये फिल्म जबरदस्त हिट रही, जिससे रविंद्र महाजनी मराठी सिनेमा के उभरते सितारे बन गए।
आगे रविंद्र महाजनी बेस्ट मराठी फिल्म का फिल्मफेयर जीतने वाली फिल्म आराम हराम आहे (1976) में नजर आए। इन फिल्मों के बाद रविंद्र को कई फिल्में मिलने लगीं। साल 1979 में रविंद्र की एक साथ 5 फिल्में रिलीज हुई थीं। लक्ष्मी, देवता, लक्ष्मीची पावले, राखांदर जैसी फिल्मों से रविंद्र की पॉपुलैरिटी में इजाफा होता चला गया।
विनोद खन्ना से होती थी रविंद्र महाजनी की तुलना
रविंद्र महाजनी मराठी सिनेमा के सबसे हैंडसम एक्टर्स में गिने जाते थे। उनका लुक और पर्सनालिटी काफी हद तक हिंदी सिनेमा के स्टार विनोद खन्ना से मिलती थी, यही वजह थी कि उन्हें मराठी सिनेमा का विनोद खन्ना कहा जाता था।
मराठी सिनेमा में नाम और शोहरत हासिल करने के बाद रविंद्र महाजनी ने मुंबई में अपना बिजनेस शुरू किया था, हालांकि बिजनेस में फ्रॉड होने के चलते उन्हें भारी नुकसान हुआ और उन्हें बिजनेस बंद करना पड़ा।
घाटे की भरपाई करने के लिए रविंद्र महाजनी फिल्मों में साइड हीरो बनकर काम करने लगे।
साल 2001 की फिल्म देखिनी बायको नामयाची के बाद रविंद्र महाजनी ने साल 2002 की फिल्म सत्ते साथी कहिनी से बतौर प्रोड्यूसर और डायरेक्टर करियर की दूसरी पारी शुरू की थी, हालांकि फिल्म कोई खास कमाल नहीं कर सकी। इसके बाद उन्होंने फिल्मों से ब्रेक ले लिया और बदलते वक्त के साथ लोग उन्हें भूलने लगे।
आखिरी बार रविंद्र महाजनी को साल 2019 में रिलीज हुई फिल्म पानीपत में देखा गया था। अर्जुन कपूर, कृति सेनन, संजय दत्त स्टारर इस पीरियड ड्रामा फिल्म में रविंद्र महाजनी ने मल्हार राव होलकर का किरदार निभाया था। इस फिल्म में उनके बेटे गशमीर महाजनी ने जनकोजी शिंदे का रोल प्ले किया था।
जुलाई 2023 में मिली डेड बॉडी, परिवार पर उठाए गए सवाल
14 जुलाई 2023 को रविंद्र महाजनी तब दोबारा सुर्खियों में आए जब उनकी डेडबॉडी पुणे के एक किराए के फ्लैट से मिली। पोस्टमार्टम से साफ था कि उनकी मौत 11 जुलाई को ही हो चुकी थी, लेकिन उनकी मौत की खबर बॉडी सड़ने की बदबू आने पर पड़ोसियों ने पुलिस को दी थी।
गश्मीर महाजनी अपनी मां को सहारा देते हुए।
रविंद्र महाजनी की मौत ने कई सवाल खड़े किए थे। पहला सवाल ये था कि मुंबई में परिवार होते हुए भी वो अकेले पुणे में क्यों रह रहे थे। दूसरा सवाल कि उनका बेटा एक नामी एक्टर है, जो मुंबई में लग्जरी जिंदगी जी रहा था, ऐसे में रविंद्र किराए के घर में क्यों रह रहे थे। तीसरा सवाल ये उठा कि रविंद्र को उनके परिवार ने ठुकरा दिया था, जिसके चलते परिवार को समय रहते उनकी मौत की खबर तक नहीं मिली। क्योंकि 3 दिनों से परिवार ने उनसे संपर्क ही नहीं किया था।
इन सभी आरोपों के बाद रविंद्र के बेटे गशमीर ने टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक इंटरव्यू में बताया कि उनके अपने पिता से रिश्ते ठीक नहीं थे। उन्होंने कहा था, हर कोई परफेक्शन का भूखा होता है, लेकिन परफेक्ट नहीं होता। न मैं और न मेरे पिता। लोग कह रहे हैं कि हमने अपने पिता को छोटे से अपार्टमेंट में छोड़ रखा था। मैं बस इतना कहना चाहूंगा कि पिछले 20 सालों से अपनी मर्जी से अकेले रह रहे थे। एक परिवार के रूप में हमारे पास उनके फैसले को कबूल करने के अलावा कोई ऑप्शन नहीं था।
रविंद्र महाजनी, बेटे गश्मीर, बहू गौरी देशमुख और पत्नी के साथ।
3 सालों से परिवार से बातचीत बंद कर दी थी- गशमीर महाजनी
आगे उन्होंने कहा था, हमारा रिश्ता एकतरफा था। वो अपनी मर्जी से हमारे साथ आकर रुकते थे और चले जाते थे। उन्हें अपने सारे काम खुद करना पसंद था। हमने कई बार उनके पुणे स्थित घर में केयरटेकर भेजे, लेकिन हर बार उन्होंने सबको भगा दिया। पिछले 3-4 सालों से उन्होंने लोगों से बातचीत करना लगभग बंद कर दिया था। वो लोगों से बात करना पसंद नहीं करते थे, यही वजह है कि उनके पड़ोसियों को भी उनकी मौत की खबर 3 दिन बाद लगी। हमारे रिश्ते टूटने के कई कारण थे, लेकिन मैं बस उन्हें एक हैंडसम एक्टर के रूप में याद करना चाहूंगा।
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